Wednesday, July 10, 2013

कर गयी प्रस्थान ..

गांठ सी थी ..
गुम अपने में मग्न
या नदी सी --कलकल ... थी ,
पहेली सी - अनबुझ ...
जब तक थी महफ़िल में बातों का कारण थी 
और मरकर भी ..........!! 
न कोई मशहूर हस्ती थी न ही कोई नामचिनी खानदान ..
कमबख्त ऐसी ही थी .......
जीते जी लोंगो की जुबान पे कसैली या रसीली ..
तुर्श.......इश श श श ....चटपटी ..मजेदार .. ...
मर कर भी ..खट्टी - मीठी ....
पहली धार सी .....तीखी ...सीधे सर चढ़ कर बोले ।
आजाद ......बिन डोर पतंग .....समाज के सागर मे बिन पतवार की नैय्या .
डूबती -तैरती -उबरती -
हिचकोले -लेती ....मनमौजी लहरों पे .
आवारा - किरण सी सवार ।
बोलती कम ,हँसती ज़्यादा थी -----
धूप में मनो अभ्रक छिडकती थी !!!!
उसकी यही बेफिक्री
कईयों को खल गयी ,
भला यह भी कोई ,
जीने का अंदाज़ है ,
न चिंता - न फिकर ,
न लाज - न हया ,
न छोटो का लिहाज़ ,
न बड़ों की शर्म
उसने किया नगाड़ा बजा एक अलग ही ऐलान --------
अब सिर्फ सुनेगी,
अपने मन की .....
अब सिर्फ करेगी ,
अपने मन की ..................
और फिर .....वह उड़ने लगी ...बहने लगी..
धरती से आकाश की और ..
झंझावातों - धूलि--धूसरित बादलों से परे ....
दूर आकाश की ओर
बिजली के प्रहार से बेपरवाह ...निडर ...मजबूत ..मस्त..
....उडती ...ऊँचे ही ऊँचे ....कर गयी प्रस्थान ..

6 comments:

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  2. और ये समाज दे भी क्या सकता था उसे सिवाए प्रस्थान करवाने के ...

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  3. समाज तो दकियानुशी ह, उम्मीद की जा सकती है समाज से , बहुत सुंदर भाव, आभार

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  4. आसमान की ओर उठते मुबारक ....!!

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