सुनहली किरणों के स्पर्श से खुल जाते थे गुलों के लब,
उड़ते परागकणों की तरह निकल आते थे तुम..
तुम बिन बुलाए अक्सर आ जाया करते थे,
मगर अब ऐसा नहीं होता...
तुम्हीं तो ख्वाबों को कागजों पर शक्ल दिया करते थे,
कभी-कभी मूसलधार बारिश की बूंदों की तरह झरते थे,
और गीतों का सिलसिला बन जाता था।
हर लम्हा, हर जगह, हर शै में तुम कहीं न कहीं उभ्ार ही जाते थे ..
मगर न जाने क्यों और कहां गुम हो।
कलम करवट ही बदलती रहती है, किसी बिरहन की तरह....
कहां-कहां न तलाशा है तुम्हें,
किताबों के हर सफे से भी तुम नदारद ही नजर आते हो।
मेरी तन्हाइयों के दोस्त-मेरे शब्द।
कितना खुशगवार होता है शब्दों के साथ जीना
और कितना खामोश दर्द दे जाता है शब्दों का बिछड़ जाना.........
उड़ते परागकणों की तरह निकल आते थे तुम..
तुम बिन बुलाए अक्सर आ जाया करते थे,
मगर अब ऐसा नहीं होता...
तुम्हीं तो ख्वाबों को कागजों पर शक्ल दिया करते थे,
कभी-कभी मूसलधार बारिश की बूंदों की तरह झरते थे,
और गीतों का सिलसिला बन जाता था।
हर लम्हा, हर जगह, हर शै में तुम कहीं न कहीं उभ्ार ही जाते थे ..
मगर न जाने क्यों और कहां गुम हो।
कलम करवट ही बदलती रहती है, किसी बिरहन की तरह....
कहां-कहां न तलाशा है तुम्हें,
किताबों के हर सफे से भी तुम नदारद ही नजर आते हो।
मेरी तन्हाइयों के दोस्त-मेरे शब्द।
कितना खुशगवार होता है शब्दों के साथ जीना
और कितना खामोश दर्द दे जाता है शब्दों का बिछड़ जाना.........
गहन भाव पिरोये शानदार प्रस्तुति पूनम जी हार्दिक बधाई स्वीकारें.
ReplyDeletedhnywad
Deleteतुम्हीं तो ख्वाबों को कागजों पर शक्ल दिया करते थे,
ReplyDeleteकभी-कभी मूसलधार बारिश की बूंदों की तरह झरते थे,
और गीतों का सिलसिला बन जाता था।
बहुत सुन्दर कल्पना
मैं
ईश्वर कौन हैं ? मोक्ष क्या है ? क्या पुनर्जन्म होता है ? (भाग २ )
shukriya
Deleteबहुत सुन्दर और भावुक रचना ----
ReplyDeleteउत्कृष्ट प्रस्तुति
सादर ----
आग्रह है मेरे ब्लॉग में सम्मलित हों
कृष्ण ने कल मुझसे सपने में बात की -------
abhar
ReplyDeleteबढ़िया सुंदर रचना व लेखन , धन्यवाद !
ReplyDeleteInformation and solutions in Hindi ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
Bahut sunder prastuti badhaayi
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