anubuthi
Sunday, June 27, 2010
aek cheraa
चाँद के चहेरे पर एक अक्स नज़र आता है ,
याद है जब एक साथ घंटो चाँद को निहारा करते थे ,
आज भी नज़र आती है तुम्हारी आंखे चाँद मे,
एक खामोश गर्माहट फैल जाती है चारो तरफ ,
उस गर्माहट की चादर लपेट ,
इंतजार करती हूँ अगली रात का |
इति .........
1 comment:
Udan Tashtari
July 23, 2010 at 1:56 PM
वाह!! सुन्दर!
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वाह!! सुन्दर!
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