anubuthi
Sunday, June 27, 2010
rishta
समपर्ण ..............
सम्पूर्ण समपर्ण ............
चाह कर भी नहीं हो पाता ,
विद्रोही मन मेरा ,
प्रशनों की दीवार पर अटक जाता है ,
रिश्तों का यह ताना - बाना,
जितना सुलझाती हूँ ,
उतना ही उलझता जाता है |
इति.........
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