जिंदा हूँ मगर , जिंदगी ढूनढती हूँ |
हैवानों के शहर में , इंसानों को ढूनढती हूँ |
सोने - चाँदी के बाज़ार मे फूलों को ढूनढती हूँ |
बंद घुटती दीवारों में , खुला आकाश ढूनढती हूँ |
काली - भयावह रात में , रोशनी की रसधार ढूनढती हूँ |
बनावटी - खोखली हंसी में , मासूम मुस्कराहट को ढूनढती हूँ |
आधे - अधूरे शब्दों में , संवाद को ढूनढती हूँ |
रुखी - सुखी इस जिंदगी में , प्यार का दीदार ढूनढती हूँ |
बहुत खूब
ReplyDeleteइस जिंदगी की तलाश कभी खत्म नहीं होगी
ReplyDeletesahi likha hai apne......bahut khoob
ReplyDeletebahut shukriya, mujhe is manch par shamil karne ke liye...aap sabhi ka abhar
ReplyDeleteजिंदा हूँ मगर , जिंदगी ढूनढती हूँ |
ReplyDeleteहैवानों के शहर में , इंसानों को ढूनढती हूँ |
bahut hi lajbab rachana .....abhar ke sath hi badhai