कहते हैं ख़ामोशी की भी जुबां होती है ,
कभी कुछ बातें ऐसे भी बयां होती हैं
,
पर मैं सुन नहीं पाती ...
कहते हैं ऑंखें भी अक्सर बोल जाती हैं ,
कभी कोई अफसाना अपना खोल जाती हैं ,
पर मैं बूझ नहीं पाती.....
एकटक ..
देखना ...
चुप चाप ...
नहीं ! समझ नहीं आते ,
अगर ढाई आखर में ही सिमटा है सब कुछ ..
तो तुम बोल क्यों नहीं पाते ..?
कभी कुछ बातें ऐसे भी बयां होती हैं
,
पर मैं सुन नहीं पाती ...
कहते हैं ऑंखें भी अक्सर बोल जाती हैं ,
कभी कोई अफसाना अपना खोल जाती हैं ,
पर मैं बूझ नहीं पाती.....
एकटक ..
देखना ...
चुप चाप ...
नहीं ! समझ नहीं आते ,
अगर ढाई आखर में ही सिमटा है सब कुछ ..
तो तुम बोल क्यों नहीं पाते ..?
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