Tuesday, February 8, 2011

ढाई आखर

कहते हैं ख़ामोशी की भी जुबां होती है ,


कभी कुछ बातें ऐसे भी बयां होती हैं
,

पर मैं सुन नहीं पाती ...


कहते हैं ऑंखें भी अक्सर बोल जाती हैं ,

कभी कोई अफसाना अपना खोल जाती हैं ,

पर मैं बूझ नहीं पाती.....


एकटक ..

देखना ...

चुप चाप ...

नहीं ! समझ नहीं आते ,

अगर ढाई आखर में ही सिमटा है सब कुछ ..

तो तुम बोल क्यों नहीं पाते ..?



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