Monday, June 27, 2011

बावरी सी बूंद

बावरी सी बूंद एक
टप से माथे पर गिरी
चूम कर पलकों को
गाल छूने को चली
पल भर ठिठकी
कुछ भरमाई
एकरस हो
नयनरस से
घुल गयी अब
फिजा में ......

5 comments:

  1. खुद को एकरसता देती अनुभूति

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  2. वाह......वाह......कितने कम लफ़्ज़ों में कितनी गहरी बात का गयीं हैं आप...शानदार |

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  3. वाह! 'नयनरस से घुल गयी अब फिजा में'
    क्या बात है!
    सुन्दर अभिव्यक्ति.

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