जागते रहो ...जागते रहो ...
आवाज़ लगता रामदीन ......
चक्कर लगता पूरी कालोनी का रात भर....
सुनता है आवाज़ टी० वि० की ..
तडकते - भड़कते विज्ञापन,
चीखते - चिल्लाते गाने ,
कही से आती खनखनाती हंसी ,
तो कहीं डरी - सहमी सी फुसफुसाहट ,
बच्चे के रोना दे रहा सुबूत अपने होने का कहीं ,
इधर है झगड़ा और गाली -गलौज का शोर ,
लगा कर पूरा एक घेरा ,
रुक गया लोहे के फाटक के पास ,
चिपका है दीवार पर "छोटा परिवार ,सुखी परिवार "
चमचमाता - रंगीन - खिलखिलाता बड़ा- सा पोस्टर ..
घूम जाता है आँखों के आगे
पीली पत्नी ... बिलबिलाते बच्चे ..
खांसता बाप औ कर्कशा माँ.........
रुक पल भर ...घूरता है .....
झटक सर फिर ..
झटक सर फिर ..
घूमने लगता है बार बार उसी बने बनाये चक्कर में......
जागते रहो ......जागते रहो .......!!!!!
shaandar prastuti
ReplyDeleteवाह, एक पहरेदार पर कविता..!!
ReplyDeleteबेहतरीन..
ReplyDeleteसुन्दर भाव
ReplyDeleteबहुत बढ़िया भाव अभिव्यक्ति,बेहतरीन रचना,... सुंदर पोस्ट...
ReplyDeleteपूनम जी,...होली बहुत२ बधाई,...
NEW POST...फिर से आई होली...
NEW POST फुहार...डिस्को रंग...
अच्छी कविता |होली की शुभकामनाएँ |
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