Sunday, March 4, 2012

जागते रहो ...जागते रहो ...
आवाज़ लगता रामदीन ......
चक्कर लगता पूरी कालोनी का रात भर....
सुनता है आवाज़ टी० वि० की ..
तडकते -  भड़कते विज्ञापन,
चीखते - चिल्लाते गाने ,
कही से आती  खनखनाती हंसी ,
तो कहीं डरी - सहमी सी फुसफुसाहट ,
बच्चे के रोना दे रहा सुबूत अपने होने का कहीं ,
इधर है झगड़ा  और गाली -गलौज का शोर ,
लगा कर पूरा एक घेरा ,
रुक गया लोहे के फाटक के पास ,
चिपका है दीवार पर  "छोटा परिवार ,सुखी परिवार "
चमचमाता - रंगीन - खिलखिलाता बड़ा- सा पोस्टर ..
घूम जाता है आँखों के आगे 
पीली पत्नी ... बिलबिलाते बच्चे ..
खांसता बाप औ कर्कशा माँ.........
रुक पल भर ...घूरता है .....
झटक सर फिर ..
घूमने लगता है बार बार उसी बने बनाये चक्कर में......
जागते रहो ......जागते रहो .......!!!!!

6 comments:

  1. वाह, एक पहरेदार पर कविता..!!

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  2. बहुत बढ़िया भाव अभिव्यक्ति,बेहतरीन रचना,... सुंदर पोस्ट...
    पूनम जी,...होली बहुत२ बधाई,...

    NEW POST...फिर से आई होली...
    NEW POST फुहार...डिस्को रंग...

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  3. अच्छी कविता |होली की शुभकामनाएँ |

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