साहिल किनारे ..
चट्टान तले..
घुटनों मे दबाये ठुड्डी ..
बैठी वह ताक रही ..
दूर-- दूर तक
फैला अनंत विस्तार ..........
सुर्ख सूरज की लाली ,
फैली लहरों के गालों पे ,
उचक - उचक हर लहर दीवानी ,
प्रेमी आकाश को चूमने को बेताब ....
अनुरागी नभ भी ,
छोड़ अपनी भव्यता ,
झुकने को तैयार
सोचे वह ...
किसका है प्रेम प्रबल ....
यह झुकता असमान
या लहरों का याचक गान ........
कितना ही प्रबल प्रेम हो ,
ReplyDeleteना लहरें आसमां छू पाईं...ना आसमां उतरा धरती पर.......
अनु
Prem ko jitna paribhaasit karne ki koshish karein kam hi lagta hai...
ReplyDeleteprem to annant hai,
ReplyDeletesundar rachna
किसका है प्रेम प्रबल ....
ReplyDeleteयह झुकता असमान
या लहरों का याचक गान .......
बहुत अच्छी प्रस्तुति,....
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