Monday, May 7, 2012

प्रबल प्रेम

साहिल किनारे ..
चट्टान तले..
घुटनों मे दबाये ठुड्डी ..
बैठी वह ताक रही ..
दूर-- दूर तक 
फैला अनंत विस्तार ..........
सुर्ख सूरज की लाली ,
फैली लहरों के गालों पे ,
उचक - उचक हर लहर दीवानी ,
प्रेमी आकाश को चूमने को बेताब ....
अनुरागी नभ भी ,
छोड़ अपनी भव्यता ,
झुकने को तैयार 
सोचे वह ...
किसका है प्रेम प्रबल ....
यह झुकता असमान 
या लहरों का याचक गान ........

4 comments:

  1. कितना ही प्रबल प्रेम हो ,
    ना लहरें आसमां छू पाईं...ना आसमां उतरा धरती पर.......

    अनु

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  2. Prem ko jitna paribhaasit karne ki koshish karein kam hi lagta hai...

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  3. किसका है प्रेम प्रबल ....
    यह झुकता असमान
    या लहरों का याचक गान .......

    बहुत अच्छी प्रस्तुति,....

    RECENT POST....काव्यान्जलि ...: कभी कभी.....

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