खिड़की से छन- छन चांदनी झरती रही --- नहलाती हर कोपी- किताब -- कलम और उस बिन मूठ-- टूटे कप को -------लेने लगी आकार तरह तरह की तस्वीरें दिवार पे ---- वह दरमियानी तुम्हारी हंसी --- मेरी चोटी खीँच कहना मोटी--- मेरा झूट मूठ का झिकना -- तुम्हारा बिनबात के मानना --- वह खुशबू अभी भी मेरे बालों मे महकती है ----बन करूं पलकों के दरिन्चों को तो ---एक रेशमी अहसास तेरा लपेट लेता है --- कितनी रोई थी मै याद है जब --अचानक पीछे से "धप्पा' कह तुम हँसे थे -----गर्म गर्म चाय गिरी मेरी हथेली पे-- घंटों अपने हाथों में ले सहलाई थी--- देखो अब भी तुम्हारा स्पर्श बाकी है इन लकीरों में -----उस दिन कितनी बारिश थी -- मद्धिम सी पनीली आवाज़ में जब मैने कहा --आज यही रुक जाओ ------ तुमने पल भर जो देखा मेरी और --- उन गहरी - सवाली आँखों मे जाने क्या था की --- भीग गयी पूरी की पूरी --सूखे बरामदे में ----हल्के से सर झटक तोड़ी गुलाबी मदहोशी तुमने -- नहीं आज नहीं फिर कभी --------आज भी इंतजार है उस पल का ----- आज भी तुम्हारे कदमों की निशान बाकी है सीढियों के नीचे जहाँ तुमने कहा था --- don 't worry दूसरा ला दूंगा-------continue..............
khubsurat ahsas, sundar ati sundar
ReplyDeleteman prafullit ho gaya
आज नहीं फिर कभी ,आज भी इंतजार है उस पल का ----
ReplyDeleteखुबशुरत अहसासों से भरी सुंदर रचना ,....
MY RECENT POST ,...काव्यान्जलि ...: आज मुझे गाने दो,...
दूसरा कप आ गया तो यादें कहाँ रहेंगी उस पल की ...
ReplyDeleteयादों को तो बहाने चाहिए दस्तक देने के...और फिर टिक जाने के..........
ReplyDeleteभावों का शब्दों के ज़रिये खूबसूरत बहाव..
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