Tuesday, May 8, 2012

-टूटा कप-

यह न कहानी है न किस्सा है ---- मेरे दिल का टूटा हुआ एक  हिस्सा है----घंटों बतियाते बरामदे की सीढ़ी पर बैठे ---- चाय के अनगिनत प्याले यूँ ही गटक जाते थे ---- वह मेरा favourit वह नीला कप ---जिस पर था एक बड़ा सा smily --- मुझे चिड़ाने की खातिर पहले ही लपक  लेते थे ---- तुम हमेशा उस आखिरी सीढ़ी पे ही बैठा करते थे --जब पूछा तो बोले, क्या करूँ  ऊंट सी लम्बी टांगे कहाँ ले जाऊ ----- और मैं हमेशा पहली सीढ़ी पे ---तुमने पूछा नहीं क्यों ---- धूप की किरण जब पत्तों से छन तुम्हारी गर्दन पर गिरती --- वह काला तिल ----दिल का आकार ले लेता था ---- एक किताब हमेशा रहती थी तुम्हारे साथ-- उसे पलटते हुए वही अधलेटे तुम कही खो जाते थे --- कितनी जलन होती थी मुझे उस मुई किताब से --- पर यह क्या पता वह तो बहाना था तुम्हारा वक़्त बिताने का ---- याद है उस दिन जब तुम कहने आए थे -- आज तुम्हारा Interview है ---कितना खुश थे तुम --- अचानक उठते हुए टल्ला लग  कप टूट गया ---- ओह !!! सॉरी यह तुम्हारा  favourit था--- don 't worry ऐसा ही दूसरा जल्दी ला दूंगा -----जाने दो कप ही तो है --- आज भी वह कप -- मेरी मेज़ पर रखा है-- बिन हत्थे का----टूटा ---बिन मूठ-------

8 comments:

  1. ये तो बताएं कि दूसरा आया कि नहीं?????????
    :-)

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    1. arey dusra kya tisra aur chutha bhi aa gya............par purana feka nahi gaya......:))))))))

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  2. Very nice, the beauty of this creation is that one line in which the writer says "aur main hamesha pehli sidhi pe --- tumne pucha hi nahi kyu?" Jab hum kuch sawal bin suljhaye chhor dete hai to cheezen zyada khoobsurat ho uthti hai...
    Regards

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  3. टूटने पर दुख होना स्वाभाविक है

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  4. कुछ चीजें यादें होती हैं .. टूटने पर भी नहीं टूटती ... कप की तरह ...

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  5. So beautiful Poonam...got home and went straight to your blog...reading loudly for Vasant. We love your poems:)))

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