रहने दो
आज ------
कुछ न कहो ,
पी लूँ ----
इस मौन को ...
उँगलियों के पोरों से ,
आँखों की झिर्रियों से ,
हथेली की लकीरों से,
लबों के स्पर्श से ,
सांसों की कम्पन से,
भुरभरी फुसफुसाहट से ........
रहने दो ---- आज ......
कुछ न कहो ......
मत पहनाओ ----
जामा रेशमी शब्दों का ,
अपनी भावनाओं को ------
रहने दो --- आज -----
नग्न यह जज्बा ---
मत बांधों ----
मत ढको--अहसास---
उघड़ने दो ---
कर दो अनावृत ---
बेनकाब -----
दे दो मुझे प्राण------
रहने दो --- आज---- कुछ न कहो ---- रहने दो ------!!!!!!
bahut achchha likha poonam ji
ReplyDeleteरहने दो --- आज---- कुछ न कहो ---- रहने दो ------!!!!!!
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति,बेहतरीन रचना,,,,,,
RECENT POST .... काव्यान्जलि ...: अकेलापन,,,,,
बेहतरीन रचना,,,,,,
ReplyDeleteबहुत सुन्दर....!!
ReplyDeleteकुछ न कहने पर ही सब कुछ कह लिया जाता है।
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