यह न कहानी है न किस्सा है ---- मेरे दिल का टूटा हुआ एक हिस्सा है----घंटों बतियाते बरामदे की सीढ़ी पर बैठे ---- चाय के अनगिनत प्याले यूँ ही गटक जाते थे ---- वह मेरा favourit वह नीला कप ---जिस पर था एक बड़ा सा smily --- मुझे चिड़ाने की खातिर पहले ही लपक लेते थे ---- तुम हमेशा उस आखिरी सीढ़ी पे ही बैठा करते थे --जब पूछा तो बोले, क्या करूँ ऊंट सी लम्बी टांगे कहाँ ले जाऊ ----- और मैं हमेशा पहली सीढ़ी पे ---तुमने पूछा नहीं क्यों ---- धूप की किरण जब पत्तों से छन तुम्हारी गर्दन पर गिरती --- वह काला तिल ----दिल का आकार ले लेता था ---- एक किताब हमेशा रहती थी तुम्हारे साथ-- उसे पलटते हुए वही अधलेटे तुम कही खो जाते थे --- कितनी जलन होती थी मुझे उस मुई किताब से --- पर यह क्या पता वह तो बहाना था तुम्हारा वक़्त बिताने का ---- याद है उस दिन जब तुम कहने आए थे -- आज तुम्हारा Interview है ---कितना खुश थे तुम --- अचानक उठते हुए टल्ला लग कप टूट गया ---- ओह !!! सॉरी यह तुम्हारा favourit था--- don 't worry ऐसा ही दूसरा जल्दी ला दूंगा -----जाने दो कप ही तो है --- आज भी वह कप -- मेरी मेज़ पर रखा है-- बिन हत्थे का----टूटा ---बिन मूठ-------
खिड़की से छन- छन चांदनी झरती रही --- नहलाती हर कोपी- किताब -- कलम और उस बिन मूठ-- टूटे कप को -------लेने लगी आकार तरह तरह की तस्वीरें दिवार पे ---- वह दरमियानी तुम्हारी हंसी --- मेरी चोटी खीँच कहना मोटी--- मेरा झूट मूठ का झिकना -- तुम्हारा बिनबात के मानना --- वह खुशबू अभी भी मेरे बालों मे महकती है ----बन करूं पलकों के दरिन्चों को तो ---एक रेशमी अहसास तेरा लपेट लेता है --- कितनी रोई थी मै याद है जब --अचानक पीछे से "धप्पा' कह तुम हँसे थे -----गर्म गर्म चाय गिरी मेरी हथेली पे-- घंटों अपने हाथों में ले सहलाई थी--- देखो अब भी तुम्हारा स्पर्श बाकी है इन लकीरों में -----उस दिन कितनी बारिश थी -- मद्धिम सी पनीली आवाज़ में जब मैने कहा --आज यही रुक जाओ ------ तुमने पल भर जो देखा मेरी और --- उन गहरी - सवाली आँखों मे जाने क्या था की --- भीग गयी पूरी की पूरी --सूखे बरामदे में ----हल्के से सर झटक तोड़ी गुलाबी मदहोशी तुमने -- नहीं आज नहीं फिर कभी --------आज भी इंतजार है उस पल का ----- आज भी तुम्हारे कदमों की निशान बाकी है सीढियों के नीचे जहाँ तुमने कहा था --- don 't worry दूसरा ला दूंगा----------
लोग कहते हैं वक़्त मरहम है ------झूठ---सब बकवास----तुमने तो ठीक से अलविदा भी नहीं कहा ----कैसे मान लूँ नहीं आओगे-----पराई ..हूँ अब----पर टिकी हूँ अब भी उसी आखिरी सीढ़ी पे------खट बटन दबाते ही नहीं होता अँधेरा ------या उजाला-------on --off --मैं --तुम ---off --तुम ---on --मैं ----on --हकीकत---off ---तस्वीरें---off ---on ---on ---off -----मैं --तुम-----याद----खट ----अँधेरा---उजाला-----off --on ---उफ्फ्फ्फ़ -----!!!!! लोग जीते थे कभी बिजली के बिना।...........क्रमश:-----------
bahut badiya lekh,
ReplyDeleteमन मोहक सुंदर आलेख ,,,,,
ReplyDeleteMY RESENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: स्वागत गीत,,,,,
अपनी रचनाओ को खूबसूरती से पिरोया है ।
ReplyDeleteshukriya
Deleteक्या बात है....बहुत ही सुंदर प्रस्तुति । आपकी लेखनी का दायरा विस्तृत होता जा रहा है । मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है । कामना है कि आप निरंतर सृजनरत रहें । धन्यवाद ।
ReplyDeleteबहुत खुबसूरत एहसास पिरोये है अपने......
ReplyDeleteलोग कहते हैं वक़्त मरहम है ------झूठ---सब बकवास----तुमने तो ठीक से अलविदा भी नहीं कहा ----कैसे मान लूँ नहीं आओगे-----पराई ..हूँ अब----पर टिकी हूँ अब भी उसी आखिरी सीढ़ी पे----
ReplyDeleteखूबसूरत दिल को संजीदा करने व दिल को छू लेने वाली कृति ।
bahot achcha likhti hain aap......
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