लपक कर मिली गले ,
नदी सागर से ...
सागर हौले से सकपकाया ,
धीरे से मुस्काया ...
नदी थी मस्त - अल्हड़ ,
चूम माथा सागर का, नदी बोली ,
हाय ! तेरी इस झेंप से मुझे प्यार हो गया .
चल -चलते हैं कही दूर ,
अकेले में जहाँ ,
सिर्फ हों मैं और तू ..
तू और मै .....
खिलखिलाई फिर बोली ...क्या है ऐसी कोई जगह ..?
सागर सकुचाया ....
अरुणित मुख -- संकेत किया ,
उस तरफ चट्टानों की ओर ..
वहाँ ..है एक निर्जन घाटी ,
पदचापों - शोर - से दूर ,
नदी आनंदित हो गुनगुनायी ,
बड़ी - बड़ी आंखे कर ,
हैरान हो -- वाकई ?
चूम माथा नदी का ,बोला सागर ,
हाय ! तेरी इस अदा से मुझे प्यार हो गया ..।।
बहुत खूब,मन को प्रभावित करती सुंदर अभिव्यक्ति ,,,,,
ReplyDeleteRECENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: आश्वासन,,,,,
dhnyawaad
Deletewaah ye najariya bhi bada accha hai poonam jee....
ReplyDeleteतेरी इस अदा से मुझे प्यार हो गया , मन को प्रभावित करती सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteshukriyaa
Deleteबहुत सारगर्भित पक्तियां
ReplyDeleteabhar
Deletevery nice expressed
ReplyDeletetnx
Deleteबहुत खूब
ReplyDeleteइस अदा पर किसे न प्यार हो जाए
बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति....
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