Wednesday, July 25, 2012

तुम दे न सके

सुनो क्या ज़्यादा मांगा था जो तुम दे न सके ,
वक़्त की शाख से कुछ पत्ते ,
नरम - नर्म बौर की महक ,
फूलो से झरता सुनहरा मकरंद ,
ज़्यादा  नहीं बस थोड़ा - थोड़ा .......

रहो चाहे कहीं  दिनभर ,
कुछ पल इस झुटपुटे के ,
संदली सी महकती  शाम ,
कानो मे शहदी मिठास ,
उँगलियों का हल्का स्पर्श,
ज़्यादा नहीं बस थोड़ा - थोड़ा .......

सुनो क्या ज़्यादा मांगा था जो तुम दे न सके ...........


10 comments:

  1. बहुत सुन्दर......

    अनु

    ReplyDelete
  2. चाह ... सच में ये तो कुछ भी नहीं माँगा था ... प्रेम में जो मांगो मिलना चाहिए ..

    ReplyDelete
  3. ज़रूर देना चाहिए था .....पर जो माँगों वो मिलता कहाँ है।

    ReplyDelete
  4. सुनो क्या ज़्यादा मांगा था जो तुम दे न सके ,
    वक़्त की शाख से कुछ पत्ते , ख्याल बहुत सुन्दर है , बधाई
    http://madan-saxena.blogspot.in/
    http://mmsaxena.blogspot.in/
    http://madanmohansaxena.blogspot.in/

    ReplyDelete
  5. उँगलियों का हल्का स्पर्श,
    ज़्यादा नहीं बस थोड़ा - थोड़ा .......

    इसके बाद क्या बच जाता है

    ReplyDelete
  6. वाह ...कोमल से एहसास

    ReplyDelete
  7. kabhi kisi ko mukammal jehan nahin milta...... Good one Poonam.

    ReplyDelete
  8. कभी न कभी मिल ही जाता है अगर इरादा हो

    ReplyDelete