जब भी सोचती हूँ तुम्हें ,
उभर आता है नीला आकाश ,
ऊँची - ऊँची चोटियाँ,
कल - कल बहती नदी ,
लम्बे - घने पेड़ ,
काली- स्यहा चट्टानें ,
और
एक पुराना मंदिर |
जहाँ बरसों से ,
कोई दिया न जला ,
परिंदा न गया ,
न घंटी, न धूप |
आओ हम - तुम मिल कर ,
धर दे देहरी पर ,
दीपक एक जलता हुआ ,
प्रतीक तेरे - मेरे एक होने का |
उभर आता है नीला आकाश ,
ऊँची - ऊँची चोटियाँ,
कल - कल बहती नदी ,
लम्बे - घने पेड़ ,
काली- स्यहा चट्टानें ,
और
एक पुराना मंदिर |
जहाँ बरसों से ,
कोई दिया न जला ,
परिंदा न गया ,
न घंटी, न धूप |
आओ हम - तुम मिल कर ,
धर दे देहरी पर ,
दीपक एक जलता हुआ ,
प्रतीक तेरे - मेरे एक होने का |
वाह ये पंक्तियाँ तो लाजवाब हैं
ReplyDeleteएक पुराना मंदिर |
जहाँ बरसों से ,
कोई दिया न जला ,
परिंदा न गया ,
न घंटी, न धूप |
आओ हम - तुम मिल कर ,
धर दे देहरी पर ,
दीपक एक जलता हुआ ,
प्रतीक तेरे - मेरे एक होने का
बेहतरीन अभिव्यक्ति ,,,,शानदार रचना,,,
ReplyDeleteआओ हम - तुम मिल कर ,
धर दे देहरी पर ,
दीपक एक जलता हुआ ,
प्रतीक तेरे - मेरे एक होने का |
RECENT POST : गीत,
बहुत खुबसूरत अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteदिया प्रतीक हो गया प्रेम का जो राह रोशन बनाएगा !
ReplyDeleteसुन्दर !
वाह वाह बहुत ही सुन्दर।
ReplyDelete