तुझे तो ढंग से रूठना भी नहीं आता ,
होंठ कुछ और आंखे कुछ और ही बयां करती है॥ ---- ----- ---- ------ ---जा - जा पहले सीख के आ हुनर मनाने का ,मै भी फिर रूठना सीख लूँगी ॥------- ------- ----- ----- मुझसे न होवे यह मान मनोव्वल की बतिया ,मिलना हो तो मिल वरना हो चली रतिया ॥ ----- ---- ----- ----- ----- ---- ---- कितना निष्ठुर - निर्मम है रे तेरा मन ,मै ही ठहरी नादां ,जो करूँ तोसे मिलन की आस ॥---- ----- ---- ----- ----- -----
हाय! तू क्या जाने बावरी कसक म्हारे जिया की ,
बिलखे - तड़पे थारे वास्ते दिन रात ॥
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अच्छा जी ! फिर काहे न करे है जतन ,
न ही करे प्रेम- मोहब्बत की बात ॥
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जब तमक जावे है तू ,चमके तोरे गाल ,
कितती प्यारी लागे है , इसलिए
यूं ही करूँ छेड़- छाड़ ॥
यूं ही करूँ छेड़- छाड़ ,
ReplyDeleteBehtreen
प्रशंसनीय रचना - बधाई
ReplyDeleteRecent Post…..नकाब
पर आपका स्वगत है
सुन्दर :-)
ReplyDeleteअनु
वाह....बहुत खूब....पहले वाला सबसे बढ़िया ।
ReplyDeleteवाह ,,, बहुत खूब पूनम जी,,
ReplyDeleteछेडछाड बातों बिना ,बढ़ता नही प्रसंग
प्यार मोहब्बत ही सदा,भरे प्रेम उमंग,,,,,
RECENT POST समय ठहर उस क्षण,है जाता,
सुन्दर भाव:)
ReplyDeleteवाह बहुत सुन्दर भाव,,पूनम जी..
ReplyDeleteजब तमक जावे है तू ,चमके तोरे गाल ,
ReplyDeleteकितती प्यारी लागे है , इसलिए
यूं ही करूँ छेड़- छाड़ ॥
सुन्दर भावाभिव्यक्ति . शुद्ध आंचलिक भाषा का प्रयोग ....
वाह पूनम क्या खूब लिखा है आपने
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