शकुंतला सा ही रहा होगा प्यार मेरा ,
तभी तो दुष्यंत सा तू भूल गया ..
नहीं दिखाने को कोई भी निशानी ,
जो तूने कभी छोड़ी ही नहीं ...
क्या दिखाती तुझे ,
पलकों पर ठहरे सपने ,
याद है मिल कर ही देखे थे ...
हवा में तैरते बोसे ,
छिप -छुपा तू ने ही बरसाए ,
याद है न वह मीठी शरारते ..
वो मन की चादर पे ,
तेरे स्पर्श की लकीरें ,
याद है न अनजाने ही छूट गयी तुझ से ...
फिर से वही वक़्त वापस दिला दे ,
बांध मुट्ठी मे चाँद , करे चांदनी से बातें ,
न तुझे कोई जल्दी न मुझ पे कोई पाबन्दी ....
ऐसा क्या है जो ,
ReplyDeleteफिर से वही वक़्त वापस दिला दे ,
बांध मुट्ठी मे चाँद , करे चांदनी से बातें ,
न तुझे कोई जल्दी न मुझ पे कोई पाबन्दी ....
पूनम जी सबसे पहले प्रणाम स्वीकार करें आपकी खुबसूरत रचना के लिए जिसमे प्रेम को आपने ईश्वरीय स्वरुप प्रदान करते हुए उसके आत्मिक क्षणों को अनुभूति दी है . बहुत ही खुबसूरत .
Deleteसुन्दर और सार्थक सृजन , बधाई.
bahut khoobsoorat bhavon ko sanjoya hai.
ReplyDeleteबहुत ही सशक्त और गहन पोस्ट.....शानदार।
ReplyDeleteमेरी हथेलियों पर एक कतरा प्यार अटका है तुम्हारा
ReplyDeleteदेखो- शायद कुछ याद आ जाए
वो मन की चादर पे ,
ReplyDeleteतेरे स्पर्श की लकीरें ,
याद है न अनजाने ही छूट गयी तुझ से,,,,
सशक्त सुंदर अभिव्यक्ति के लिये बधाई पूनम जी,,,,,
RECENT POST : गीत,
बहुत ही बेहतरीन रचना है..
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति...
:-)
bhawbhini prastuti.....
ReplyDeleteVery nice one! Loved it.
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