Friday, September 28, 2012

शकुंतला सा ही रहा होगा प्यार मेरा



शकुंतला सा ही रहा होगा प्यार मेरा ,
तभी तो दुष्यंत सा तू भूल गया ..
नहीं दिखाने को कोई भी निशानी ,
जो तूने कभी छोड़ी ही नहीं ...

क्या दिखाती तुझे ,
पलकों पर ठहरे सपने ,
याद है मिल कर ही देखे थे ...

हवा में तैरते बोसे ,
छिप -छुपा तू ने ही बरसाए ,
याद है न वह मीठी शरारते ..

वो मन की चादर पे ,
तेरे स्पर्श की लकीरें ,
याद है न अनजाने ही छूट गयी तुझ से ...

ऐसा क्या है जो ,
फिर से वही वक़्त वापस दिला दे ,
बांध मुट्ठी मे चाँद , करे चांदनी  से बातें ,
न तुझे  कोई जल्दी न मुझ पे कोई पाबन्दी ....


9 comments:

  1. ऐसा क्या है जो ,
    फिर से वही वक़्त वापस दिला दे ,
    बांध मुट्ठी मे चाँद , करे चांदनी से बातें ,
    न तुझे कोई जल्दी न मुझ पे कोई पाबन्दी ....

    पूनम जी सबसे पहले प्रणाम स्वीकार करें आपकी खुबसूरत रचना के लिए जिसमे प्रेम को आपने ईश्वरीय स्वरुप प्रदान करते हुए उसके आत्मिक क्षणों को अनुभूति दी है . बहुत ही खुबसूरत .

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    1. सुन्दर और सार्थक सृजन , बधाई.

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  2. bahut khoobsoorat bhavon ko sanjoya hai.

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  3. बहुत ही सशक्त और गहन पोस्ट.....शानदार।

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  4. मेरी हथेलियों पर एक कतरा प्यार अटका है तुम्हारा
    देखो- शायद कुछ याद आ जाए

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  5. वो मन की चादर पे ,
    तेरे स्पर्श की लकीरें ,
    याद है न अनजाने ही छूट गयी तुझ से,,,,

    सशक्त सुंदर अभिव्यक्ति के लिये बधाई पूनम जी,,,,,

    RECENT POST : गीत,

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  6. बहुत ही बेहतरीन रचना है..
    सुन्दर प्रस्तुति...
    :-)

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