Thursday, October 25, 2012

पेशा है , पेशावर हूँ ......

रोज़ रात बेचती जिस्म ,
घर मे पड़े जिस्मों के लिए ॥ 

जिन छातियों को दिखा ,
कमाती चंद सिक्के ,
उन्ही से सींचती नन्ही फसल ॥ 

बंद दरवाजों और दरीचों के पीछे 
अदा और अंदाज़ पर बिछे जाते जो ,
वही सरेआम है खुलकर थूकते ॥ 

रख ताक पर उसूल और धर्म,
नोंचते -खसोटते रहे रात भर ,
फिर भी रहे पवित्र ,औ मुफ्त बनी पापिन ॥

रोज़ रात बेचती जिस्म ,
घर मे पड़े जिस्मों के लिए ,
पेशा है , पेशावर हूँ ...... तुम सबकी तरह ॥

12 comments:

  1. रख ताक पर उसूल और धर्म,
    नोंचते -खसोटते रहे रात भर ,
    फिर भी रहे पवित्र ,औ मुफ्त बनी पापिन ॥

    रोज़ रात बेचती जिस्म ,
    घर मे पड़े जिस्मों के लिए ,
    पेशा है , पेशावर हूँ ...... तुम सबकी तरह ॥

    एक सच्ची बात जिसे सुनकर देखकर तकलीफ होती है और ये दस्तूर बनता जा रहा है .

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  2. हकीकत को बयाँ करती कडवी सच्चाई

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  3. कुछ कहने के लिए शब्द नहीं हैं....बस हैट्स ऑफ ।

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  4. bahut dardnaak hai aur kaduva bhi magar ek sach ye bhi hota hai jise apne lekhni se bakhobi sankshep me darshaya hai ,bahut sundar .

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  5. रोज़ रात बेचती जिस्म ,
    घर मे पड़े जिस्मों के लिए ॥ ... शब्द मौन ना हों तो क्या !!!

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  6. उफ़ ...इस कटु सत्य के लिए आपको सलाम

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  7. घर मे पड़े जिस्मों के लिए ॥

    वही सरेआम है खुलकर थूकते ॥

    फिर भी रहे पवित्र ,औ मुफ्त बनी पापिन ॥
    इन पंक्तियों के लिए मेरे पास कोई शब्द नहीं हैं
    लाजवाब,उम्दा,अच्छी,बढ़िया,गजब जैसे शब्द तुच्छ लगते है.

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