रोज़ रात बेचती जिस्म ,
घर मे पड़े जिस्मों के लिए ॥
जिन छातियों को दिखा ,
कमाती चंद सिक्के ,
उन्ही से सींचती नन्ही फसल ॥
बंद दरवाजों और दरीचों के पीछे
अदा और अंदाज़ पर बिछे जाते जो ,
वही सरेआम है खुलकर थूकते ॥
रख ताक पर उसूल और धर्म,
नोंचते -खसोटते रहे रात भर ,
फिर भी रहे पवित्र ,औ मुफ्त बनी पापिन ॥
रोज़ रात बेचती जिस्म ,
घर मे पड़े जिस्मों के लिए ,
पेशा है , पेशावर हूँ ...... तुम सबकी तरह ॥
घर मे पड़े जिस्मों के लिए ॥
जिन छातियों को दिखा ,
कमाती चंद सिक्के ,
उन्ही से सींचती नन्ही फसल ॥
बंद दरवाजों और दरीचों के पीछे
अदा और अंदाज़ पर बिछे जाते जो ,
वही सरेआम है खुलकर थूकते ॥
रख ताक पर उसूल और धर्म,
नोंचते -खसोटते रहे रात भर ,
फिर भी रहे पवित्र ,औ मुफ्त बनी पापिन ॥
रोज़ रात बेचती जिस्म ,
घर मे पड़े जिस्मों के लिए ,
पेशा है , पेशावर हूँ ...... तुम सबकी तरह ॥
रख ताक पर उसूल और धर्म,
ReplyDeleteनोंचते -खसोटते रहे रात भर ,
फिर भी रहे पवित्र ,औ मुफ्त बनी पापिन ॥
रोज़ रात बेचती जिस्म ,
घर मे पड़े जिस्मों के लिए ,
पेशा है , पेशावर हूँ ...... तुम सबकी तरह ॥
एक सच्ची बात जिसे सुनकर देखकर तकलीफ होती है और ये दस्तूर बनता जा रहा है .
BAHUT SUNDAR AUR SACH KO PRAKASHIT KARTI HUI RACHNA
ReplyDeleteसच्चाई की सुंदर अभिव्यक्ति,,,,
ReplyDeleteRECENT POST...: विजयादशमी,,,
हकीकत को बयाँ करती कडवी सच्चाई
ReplyDeletesadhuwad
ReplyDeleteकुछ कहने के लिए शब्द नहीं हैं....बस हैट्स ऑफ ।
ReplyDeletebahut dardnaak hai aur kaduva bhi magar ek sach ye bhi hota hai jise apne lekhni se bakhobi sankshep me darshaya hai ,bahut sundar .
ReplyDeleteरोज़ रात बेचती जिस्म ,
ReplyDeleteघर मे पड़े जिस्मों के लिए ॥ ... शब्द मौन ना हों तो क्या !!!
उफ़ ...इस कटु सत्य के लिए आपको सलाम
ReplyDeletekatu satya...
ReplyDeleteघर मे पड़े जिस्मों के लिए ॥
ReplyDeleteवही सरेआम है खुलकर थूकते ॥
फिर भी रहे पवित्र ,औ मुफ्त बनी पापिन ॥
इन पंक्तियों के लिए मेरे पास कोई शब्द नहीं हैं
लाजवाब,उम्दा,अच्छी,बढ़िया,गजब जैसे शब्द तुच्छ लगते है.
कटु सत्य..
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