उम्र है आठ , बच्चे है सात ,
माँ जाए तो क्या ,
जननी तो वही है उनकी ,
जनते ही भूले जनक ,
माता को मिली न फुरसत जो ,
दुलारती- पुचकारती - लढ़ीयाती उसे ,
इन सभी कमियों को ,
पूरी ईमानदारी से पूरा कर रही ,
यह बुजुर्गुया नन्ही सी जान ।
जो नहीं मिला खुद को कभी,
बाँट रही फिर भी बाकियों को भरपूर ,
मातृत्व के बोझ से दबी,
चिथड़ों मे लिपटी ,
चिथड़ों को संभालती ,
उम्र है आठ , लगती है साठ.....
बेहद मार्मिक रचना। "बकियों" की जगह "बाकियों" कर ले
ReplyDeleteमेरी नयी पोस्ट पर आपका स्वागत है बेतुकी खुशियाँ
ye hamare desh ka kadva sach hai,
ReplyDeleteबेहद मार्मिक रचना.बढिया ,बधाई
ReplyDeleteह्रदय को जकझोर देने वाला कटु सत्य मार्मिक रचना बधाई स्वीकारें
ReplyDeleteRECENT POST चाह है उसकी मुझे पागल बनाये
.बेहद मार्मिक रचना।..
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ReplyDeleteमार्मिक ...पर सच यही है
ReplyDelete(कामियों.......कमियों ...बकियों......बाकियों ....शब्द सही कर ले )...सादर
मार्मिक उम्दा सृजन,,,, बधाई।
ReplyDeleterecent post हमको रखवालो ने लूटा