काफ़िर हूँ कुफ़्र बोलती हूँ ,
इश्क है...इश्क हूँ...इश्क करती हूँ ।
न मंदिर ,न मस्जिद न गिरजे मे इबादत ,
हर सूं बस तुझे देखती हूँ ॥
काफ़िर हूँ कुफ़्र बोलती हूँ,
इश्क है , इश्क हूँ, इश्क करती हूँ ....
तू ही गीता ,कुरान औ पुराण मेरा ,
तुझे ही पढ़ती,गुनती, रटती हूँ॥
काफ़िर हूँ ,कुफ़्र बोलती हूँ ,
इश्क है , इश्क हूँ, इश्क करती हूँ ॥
इश्क है...इश्क हूँ...इश्क करती हूँ ।
न मंदिर ,न मस्जिद न गिरजे मे इबादत ,
हर सूं बस तुझे देखती हूँ ॥
काफ़िर हूँ कुफ़्र बोलती हूँ,
इश्क है , इश्क हूँ, इश्क करती हूँ ....
तू ही गीता ,कुरान औ पुराण मेरा ,
तुझे ही पढ़ती,गुनती, रटती हूँ॥
काफ़िर हूँ ,कुफ़्र बोलती हूँ ,
इश्क है , इश्क हूँ, इश्क करती हूँ ॥
तू ही मेरी
पुजा , इबादत मेरी ,
श्लोक कहो या आयात ,
तुझे ही हरदम सुनती हूँ ,
काफ़िर हूँ , कुफ़्र बोलती हूँ ,
इश्क है , इश्क हूँ, इश्क करती हूँ ॥
श्लोक कहो या आयात ,
तुझे ही हरदम सुनती हूँ ,
काफ़िर हूँ , कुफ़्र बोलती हूँ ,
इश्क है , इश्क हूँ, इश्क करती हूँ ॥
इश्क है तो कुफ्र जायज है
ReplyDeleteandaje bayan behtreen
ReplyDeleteबहुत अद्भुत अहसास...सुन्दर प्रस्तुति बहुत ही अच्छा लिखा आपने .बहुत ही सुन्दर रचना.बहुत बधाई आपको .
ReplyDeleteसुन्दर अद्भुत अहसास...उम्दा प्रस्तुति..
ReplyDeleteवाह बहुत सुन्दर रचना
ReplyDeletebahut hi khoobsurat
ReplyDeleteन मंदिर ,न मस्जिद न गिरजे मे इबादत ,
ReplyDeleteहर सूं बस तुझे देखती हूँ ॥
....बेहतरीन प्रस्तुति..
,,,,,बेहतरीन अभिव्यक्ति सुंदर रचना,
ReplyDeleterecent post: वजूद,
जहाँ भी रब का अक्स दिखता है वहीँ इबादत है ।
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