Monday, December 17, 2012

काश तुम दूर न होते

काश तुम दूर न होते ,
काश यह मौसम इतना खुशगवार न होता ,
देखो न आसमान से मधू है रहा झर,
काश मेरी ओक से तुम घूंट - घूंट पीते ,
मदहोशी के इस आलम मे एक-दूजे मे खोते,
काश तुम आस- पास होते । 
देखो न सुबह की बनी चाय ,
कब से पड़ी कोने मे कड़वी है हो गयी ,
बदरी भी बरस बरस कारी सी हो गयी ,
रस्ते खड़े पेड़ झूम-झूम सो गए ,
तेरी राह मे बिछे नैन कब के खो गए ,
काश तुम दूर न होते ,
काश तुम आस- पास होते ....

4 comments:

  1. "काश तुम आस-पास होते ..." ?

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  2. वाह बहुत उम्दा रचना है ... इंतज़ार अब परवान पर है इससे आगे इंतजार मुझे खाने को दोडेगा.

    मेरी नई कविता आपके इंतज़ार में है: नम मौसम, भीगी जमीं ..

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