Sunday, December 16, 2012

काफ़िर हूँ कुफ़्र बोलती हूँ


काफ़िर हूँ कुफ़्र बोलती हूँ ,
इश्क है...इश्क हूँ...इश्क करती हूँ ।
न मंदिर ,न मस्जिद न गिरजे मे इबादत ,
हर सूं बस तुझे देखती हूँ ॥
काफ़िर हूँ कुफ़्र बोलती हूँ,
इश्क है , इश्क हूँ, इश्क करती हूँ ....
तू ही गीता ,कुरान औ पुराण मेरा ,
तुझे ही पढ़ती,गुनती, रटती हूँ॥
काफ़िर हूँ ,कुफ़्र बोलती हूँ ,
इश्क है , इश्क हूँ, इश्क करती हूँ ॥ 
तू ही मेरी पुजा , इबादत मेरी ,
श्लोक कहो या आयात ,
तुझे ही हरदम सुनती हूँ ,
काफ़िर हूँ , कुफ़्र बोलती हूँ ,
इश्क है , इश्क हूँ, इश्क करती हूँ ॥

9 comments:

  1. इश्क है तो कुफ्र जायज है

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  2. बहुत अद्भुत अहसास...सुन्दर प्रस्तुति बहुत ही अच्छा लिखा आपने .बहुत ही सुन्दर रचना.बहुत बधाई आपको .

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  3. सुन्दर अद्भुत अहसास...उम्दा प्रस्तुति..

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  4. वाह बहुत सुन्दर रचना

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  5. न मंदिर ,न मस्जिद न गिरजे मे इबादत ,
    हर सूं बस तुझे देखती हूँ ॥

    ....बेहतरीन प्रस्तुति..

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  6. ,,,,,बेहतरीन अभिव्यक्ति सुंदर रचना,

    recent post: वजूद,

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  7. जहाँ भी रब का अक्स दिखता है वहीँ इबादत है ।

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