कुछ कहीं टूटा ,
न आवाज़ ,
न शोर ,
फिर भी टूटा तो सही ॥
बंद थी पलकें ,
भिंची हुई कस के
फिर भी बहा तो सही ॥
रोका बहुत ,
संभाला बहुत ,
सिरहाने तले दबा था जो ,
करवटों से सलवटों पे ,
फिर भी तेरा नाम पसरा ....
न आवाज़ ,
न शोर ,
फिर भी टूटा तो सही ॥
बंद थी पलकें ,
भिंची हुई कस के
फिर भी बहा तो सही ॥
रोका बहुत ,
संभाला बहुत ,
सिरहाने तले दबा था जो ,
करवटों से सलवटों पे ,
फिर भी तेरा नाम पसरा ....
कुछ कहीं टूटा ,
ReplyDeleteन आवाज़ ,
न शोर ,
फिर भी टूटा तो सही ॥
बंद थी पलकें ,
भिंची हुई कस के
फिर भी बहा तो सही ॥
रोका बहुत ,
संभाला बहुत ,
सिरहाने तले दबा था जो ,
करवटों से सलवटों पे ,
फिर भी तेरा नाम पसरा ....
अद्भुत मन की गहराई तक उतरनेवाली रचना के लिए आभार . निःशब्द
bahut bahut abhar
Deletebehtreen
ReplyDeleteवाह.......बहुत खूब।
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