एकदम अछूती , परी सी ,
सारी उपमाओं से परे ,
ऐसी थी वो बेमिसाल ।
देख - देख उसे आहें भरते ,
आने - जाने वाले बेशुमार ।
अपनी धुन में ,वह मतवाली ,
इन सब से बातों से अनजान ।
उन सब मतवालों मे ,वह भी था ,
आशिक उसका ,मामूली सा एक इंसान ।
आते -जाते उसको ताके ,
पर न कर पाये इज़हार।
एक दिन कर मन को पक्का ,
रोक उसे धीरे से बोला,
करता हूँ मै ,तुझसे प्यार ,
तू मेरी सोनी ,मै तेरा महिवाल ।
तमक कर बोली ,
जा - जा पहले देख अपनी औकात ,
तेरे जैसे कितने घूमे ,
आईना मे देख अपनी शक्ल ,
नहीं मेरी जूती के लायक ,
बड़ा चला बनने महीवाल ।
हो मायूस ,दर से लौटा ,
टूटा दिल औ बहकी चाल,
फिर न आया उसकी चौखट ,
बीत गए दिन और साल ।
जन्मदिन पर अपने ,
पौड़ी पे पाया उसने रंगबिरंगा
लिपटा सुंदर सा एक उपहार ।
खोला उसे लपक कर,
निकली जूतियाँ नक्काशीदार ,
मुलायम - सुंदर - अनमोल ,
लगा उन्हे सीने से झूमी ,
आई एक नाज़ुक सी आह ।
विस्मित सी हुई ,
सिर झटक पहनी पैरों मे,
रखा जैसे ही ज़मीं पे पाँव ,
करहाती सी आई आवाज़ ,
तू मेरी सोनी , मै तेरा महीवाल ।
हुई अवाक, सोचे कहाँ से ,
आए ये बार - बार आवाज़ ,
कोई भी तो नहीं यहाँ पर ,
होगा कोई वहम - शहम,
पर लगे एक जानी - पहचानी सी बात ।
ज्यों - ज्यों वह कदम उठाए ,
गूँजे फिर फिर वही आवाज़ ,
तू मेरी सोनी मै तेरा महिवाल,
पगला गयी - बौखला गयी ,
ढूँढे घर के हर द्वार ,
नही मिला जब कोई उसको ,
लांघ गयी दलहीज ,
भागे गली - चौराहे ,
पार किए सब नदी व ताल ,
नाद बस यही ,तू मेरी सोनी -मै तेरा माही ।
कहते है आज भी जंगलों मे अक्सर ,
दौड़ती - भागती - सिसकती ,
टकराती पेड़ों - पत्थर से ,
पथराई आंखो से ढूँढे ,
अनहद करती वही आवाज़ ,
" तू मेरी सोनी , मै तेरा माही " ,
तू मेरी सोनी , मै तेरा माही .....!!!!!!
अच्छी रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर
बहतरीन, बेहतरीन..........हैट्स ऑफ इसके लिए।
ReplyDeleteप्रेम के सुंदर भावों से भरी वैलेन्टाइनी रचना
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ReplyDeleteकहते है आज भी जंगलों मे अक्सर ,
दौड़ती - भागती - सिसकती ,
टकराती पेड़ों - पत्थर से ,
पथराई आंखो से ढूँढे ,
अनहद करती वही आवाज़ ,
" तू मेरी सोनी , मै तेरा माही " ,
तू मेरी सोनी , मै तेरा माही -------अदभुत
कविता का कहन गहरे तक ले जाता है
मन को भेदती रचना
बहुत बहुत बधाई