Thursday, February 21, 2013

तब से यही हूँ .... यहीं हूँ


नहीं नहीं नहीं ....बस यही बुदबुदा रही थी 
बस मत पलटना ,
मत मूड कर देखना ,
मै न जा पाऊँगी ,
पर तुम तो हमेशा से रहे जिद्दी ,
मेरी सुनी कब जो अब सुनते ,
आखिर जाते- जाते पलट ही गए ,
हल्की सी चोट्टी हंसी और एक उंगली का इशारा ,
पलट कर , कर ही गए ,
देखो , अब न जा पाऊँगी ,
देखो तब से यही हूँ .... यहीं हूँ

9 comments:

  1. तुम जा न सको इसलिए तो पलटा...
    इशारा समझो तो सही :-)

    अनु

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    1. तुम्हारी इसी अदा पर हम मर गए ॥:)

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  2. ओ जाने वाले लौट के आजा......इतनी सर्दी में मारेगा क्या

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  3. आखिर जाते- जाते पलट ही गए ,
    हल्की सी चोट्टी हंसी और एक उंगली का इशारा ,
    पलट कर , कर ही गए ,
    देखो , अब न जा पाऊँगी ,
    देखो तब से यही हूँ .... यहीं हूँ

    पूनम जी इतना कठिन मत लिखा करिए की आँखों में आंसू आ जाये

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  4. तुम तो हमेशा से रहे जिद्दी ,
    मेरी सुनी कब जो अब सुनते ,
    आखिर जाते- जाते पलट ही गए ,
    हल्की सी चोट्टी हंसी और एक उंगली का इशारा !

    बहुत खूब...

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  5. बहुत सुन्दर पंक्तियाँ ..आभार

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  6. बहुत खूब , निराला अंदाज़ !

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