घर की बालकनी पर अधटंगे ,
सिगरेट का कश लगा ,
छल्लो के साथ - साथ ,
कुछ - कुछ मुझे भी फूंकते हुये ,
चाँद की ओर मुंह कर ,
एक गहरी सोच मे डूबते हुये ,
दार्शनिक मुद्रा मे शायद ,
वह मुझे ही देखता होगा ....
उसे क्या पता ,
दूर कहीं एक पागल - सी ,
सिरफिरी लड़की ,
दुनियादारी से अनजान ,
अक्सर तपती दुपहरी मे ,
नंगे पाँव छत पर ,
पैरों को अदल - बदल ,
करती है चाँद का इंतज़ार ,
लोगों को दिखे दादी या चरखा ,
वह तो ताके दो मदहोश निगाहें ...
दुनियादारी से अनजान ,
ReplyDeleteअक्सर तपती दुपहरी मे ,
नंगे पाँव छत पर ,
पैरों को अदल - बदल ,
करती है चाँद का इंतज़ार ,
लोगों को दिखे दादी या चरखा ,
वह तो ताके दो मदहोश निगाहें ...!
बहुत सुन्दर एहसास....
और ये एहसास ही जिंदगी है...!!
सुन्दर एहसास....
ReplyDelete..... प्यार का नशा वही जाने,जो चकोर हो
ReplyDeleteवाह ....अजब ये प्यार है
ReplyDeleteलाजबाब, बेहतरीन रचना,,,,
ReplyDeleteRecent Post: कुछ तरस खाइये
प्रेम लोगो को एक पैर पर खड़ा रखता है --लाजबाब,
ReplyDeletenew postक्षणिकाएँ
क्या बात.......बहुत खूब।
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ReplyDeleteधन्यवाद
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उसे क्या पता ,
ReplyDeleteदूर कहीं एक पागल - सी ,
सिरफिरी लड़की ,
दुनियादारी से अनजान ,
अक्सर तपती दुपहरी मे ,
नंगे पाँव छत पर ,
पैरों को अदल - बदल ,
करती है चाँद का इंतज़ार ,
लोगों को दिखे दादी या चरखा ,
वह तो ताके दो मदहोश निगाहें ...
गजब की कसीस लिए चाहत भरी दोपहरी में चाँद देखने की वाह ...