Monday, February 25, 2013

दो मदहोश निगाहें ...


 घर की बालकनी पर अधटंगे ,
सिगरेट का कश लगा ,
छल्लो के साथ - साथ ,
कुछ - कुछ मुझे भी फूंकते हुये ,
चाँद की ओर मुंह कर ,
एक गहरी सोच मे डूबते हुये ,
दार्शनिक मुद्रा मे शायद ,
वह मुझे ही देखता होगा .... 

उसे क्या पता ,
दूर कहीं एक पागल - सी ,
सिरफिरी लड़की , 
दुनियादारी से अनजान ,
अक्सर तपती दुपहरी मे ,
नंगे पाँव छत पर ,
पैरों को अदल - बदल ,
करती है चाँद का इंतज़ार ,
लोगों को दिखे दादी या चरखा ,
वह तो ताके दो मदहोश निगाहें ...

9 comments:

  1. दुनियादारी से अनजान ,
    अक्सर तपती दुपहरी मे ,
    नंगे पाँव छत पर ,
    पैरों को अदल - बदल ,
    करती है चाँद का इंतज़ार ,
    लोगों को दिखे दादी या चरखा ,
    वह तो ताके दो मदहोश निगाहें ...!

    बहुत सुन्दर एहसास....
    और ये एहसास ही जिंदगी है...!!

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  2. ..... प्यार का नशा वही जाने,जो चकोर हो

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  3. वाह ....अजब ये प्यार है

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  4. प्रेम लोगो को एक पैर पर खड़ा रखता है --लाजबाब,
    new postक्षणिकाएँ

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  5. क्या बात.......बहुत खूब।

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    धन्यवाद
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  7. उसे क्या पता ,
    दूर कहीं एक पागल - सी ,
    सिरफिरी लड़की ,
    दुनियादारी से अनजान ,
    अक्सर तपती दुपहरी मे ,
    नंगे पाँव छत पर ,
    पैरों को अदल - बदल ,
    करती है चाँद का इंतज़ार ,
    लोगों को दिखे दादी या चरखा ,
    वह तो ताके दो मदहोश निगाहें ...

    गजब की कसीस लिए चाहत भरी दोपहरी में चाँद देखने की वाह ...

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