पहाड़ी की तलहटी वाला वह कस्बा ,
बहुत अलग था , सबसे अलग ,
उस शहर के ऊपर मंडराया करती ,
तरह -तरह की विभिन्न प्रकार की चिड़ियाँ ।
उस कस्बे की सबसे ऊँची चोटी पर ,
रहता सफ़ेद - लंबी दाड़ी वाला बाबा ,
रस्यमयी - मायावी - चमत्कारी ,
काले से भी काले जादू का मालिक ,
बदल दे मंत्र से किसी को कुछ भी ।
देखा है अक्सर नीले - स्यहा बदन वाली ,
हर आकार - प्रकार की औरतों को ,
शाम के झुटपुटे मे उन घुमावदार रस्तों पे चढ़ते ,
अगले दिन एक और चिड़िया की संख्या बढ़ जाती ,
मुक्त हो जाती उस दर्दनाक जिंदगी से ,
बस नहीं छोड़ पाती अपने कस्बे का मोह ,
इसलिए खुली हवा - धूप मे वहीं मंडराती ।
Prakriti hai to hum hain, behtreen lekh
ReplyDeletetensionless hota hai aisa kaswa prakriti ...khushiya bina maange hi deti hai .....
ReplyDeleteप्रकृति से जुड़कर रहने से शांति का एहसास होता है
ReplyDeletelatest post मोहन कुछ तो बोलो!
latest postक्षणिकाएँ
वाह . बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति
ReplyDeleteबेहतरीन.......ये कुछ समझ नहीं पाया -
ReplyDeleteशाम के झुटपुटे मे उन घुमावदार रस्तों पे चढ़ते ,
अगले दिन एक और चिड़िया की संख्या बढ़ जाती ,