मेरा अकेलापन बहुत जिद्दी है ,
नन्हे बालक की तरह ,
पल भर को बहल जाता है ,
माटी के खिलौने से |
फिर चिपक जाता है मुझसे ,
हवा में तैरते रोयों की तरह ,
जो होते हुए भी नहीं दिखता|
हजारों की भीड़ मे भी रहता है ,
हमेशा मेरे बहुत आस -पास |
भीतर कहीं दबा - दबा ,
उभर आता है अचानक ,
हड्डियों में जमे दर्द की तरह,
टीस, वेदना और सालता है मुझे |
यही दर्द बन जाता है दवा भी ,
भावों का रूप ले ...
कविता बन बह जाता है |
नन्हे बालक की तरह ,
पल भर को बहल जाता है ,
माटी के खिलौने से |
फिर चिपक जाता है मुझसे ,
हवा में तैरते रोयों की तरह ,
जो होते हुए भी नहीं दिखता|
हजारों की भीड़ मे भी रहता है ,
हमेशा मेरे बहुत आस -पास |
भीतर कहीं दबा - दबा ,
उभर आता है अचानक ,
हड्डियों में जमे दर्द की तरह,
टीस, वेदना और सालता है मुझे |
यही दर्द बन जाता है दवा भी ,
भावों का रूप ले ...
कविता बन बह जाता है |
बहुत उम्दा अभिव्यक्ति,सुंदर रचना,,,
ReplyDeleteRECENT POST : प्यार में दर्द है,
ReplyDeleteआज हर व्यक्ति का अकेलापन भीड़ में भी उसके साथ रहता है -बढ़िया रचना
latest post तुम अनन्त
दर्द कविता को जनम देता है !
ReplyDeleteभीतर कहीं दबा - दबा ,
ReplyDeleteउभर आता है अचानक ,
हड्डियों में जमे दर्द की तरह,
टीस, वेदना और सालता है मुझे |
यही दर्द बन जाता है दवा भी ,
भावों का रूप ले ...
कविता बन बह जाता है |
दिल के करीब दिल से जुडी भावनाएं ....