रोज़ सुबह यही होता है,
उठाने जाती हूँ उसे और ,
वह उनिदी पलकों से फुसफुसा ,
चादर उठा कहता है बस पाँच मिनिट ,
मै भी इंकार नहीं कर पाती,
बजते कुकर की सीटी को भूल ,
हौले से सरक जाती हूँ उसकी चादर मे ,
हल्का सा चुंबन उसके माथे पे ,
मीठी सी डांट , देर हो रही है ,
कस कर लपेट लेता है वह ....
डाल अपनी टांगे मेरे ऊपर ,
हम्महम्म प्लीज़ .....माँ .... थोड़ी देर और ....
क्या करूँ माँ हूँ न ... पिघल जाती हूँ....
उसकी बाहों मे सिर रख बच्ची सी बन जाती हूँ .....
रोज़ सुबह यही होता है .....
sach kaha yahi hota hai
ReplyDelete.माँ तो ममता की अविरल धारा है... .बहुत.सुंदर रचना..
ReplyDeletemaa jharane si aise hi bahati hai, aur bachche lata ki tarah aise hi lipatate hain.
ReplyDeleteयही तो है माँ का प्यार ....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteसाझा करने के लिए आभार!
माँ को नमन...!
माँ की ममता ऐसी ही होती है,
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