एक समय था ,
जब इस दीवार मे ,
एक खुली खिड़की थी ,
उसमे से कभी - कभी ,
कुछ ज़िंदा साँसे झाँका करती थी ,
हल्की से नर्म बयार बहा करती थी ,
नर्म - गरम हंसी खन खनाती थी ,
पर अब नहीं ..... अब नहीं .....
पुख्ता है दीवार ,
चुन गयी है खिड़की ,
गुज़र गयी है साँसे ,
ज़हरीली है बयार ,
मुरझाई सी हंसी ,
समय का फेर .......समय का फेर ....
जब इस दीवार मे ,
एक खुली खिड़की थी ,
उसमे से कभी - कभी ,
कुछ ज़िंदा साँसे झाँका करती थी ,
हल्की से नर्म बयार बहा करती थी ,
नर्म - गरम हंसी खन खनाती थी ,
पर अब नहीं ..... अब नहीं .....
पुख्ता है दीवार ,
चुन गयी है खिड़की ,
गुज़र गयी है साँसे ,
ज़हरीली है बयार ,
मुरझाई सी हंसी ,
समय का फेर .......समय का फेर ....
वाह बहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत बढिया..
ReplyDeleteबेहतरीन अंदाज़..... सुन्दर
ReplyDeleteअभिव्यक्ति.......
बहुत बहुत सुन्दर
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