याद है न ,
जहाँ खड़े थे तुम ,
पत्तियों से झाँकता ,
बेशर्म सूरज तुम्हें ,
गलबहियाँ ले रहा था ,
हल्के परेशान तो थे ,
पर जमे रहे उसी कोने से ,
क्यों नहीं बड़े आगे ?
क्या होता ,शायद कुछ ,
हम - तुम करीब हो जाते ,
अड़ियल - टट्टू हो न ,
"मै" मे अड़े के अड़े ,
आज भी है कोना वही ,
बस एक तुम नहीं ,
सूरज भी नहीं करता अब कोई मनमानी ....
जहाँ खड़े थे तुम ,
पत्तियों से झाँकता ,
बेशर्म सूरज तुम्हें ,
गलबहियाँ ले रहा था ,
हल्के परेशान तो थे ,
पर जमे रहे उसी कोने से ,
क्यों नहीं बड़े आगे ?
क्या होता ,शायद कुछ ,
हम - तुम करीब हो जाते ,
अड़ियल - टट्टू हो न ,
"मै" मे अड़े के अड़े ,
आज भी है कोना वही ,
बस एक तुम नहीं ,
सूरज भी नहीं करता अब कोई मनमानी ....
बेहतरीन अभिवयक्ति.....
ReplyDeleteबढ़िया अभिव्यक्ति !
ReplyDeletelatest post नेताजी सुनिए !!!
latest post: भ्रष्टाचार और अपराध पोषित भारत!!
लाजबाब बढ़िया अभिव्यक्ति,
ReplyDeleteRECENT POST : तस्वीर नही बदली
वाह बहुत खूब
ReplyDeleteबहुत खूब...
ReplyDeleteआज भी है कोना वही ,
ReplyDeleteबस एक तुम नहीं ,
सूरज भी नहीं करता अब कोई मनमानी ....
Very touching!
Aap behad umda likhti hai.
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