सुनो , वो नर्म कतरे अपनी साँसो के ,
छोड़े थे जो गर्दन के पीछे ,
ठीक दाएँ कान के नीचे ,
आज भी सुलगते हैं..........................
सुनो , वो नमकीन से बोसे ,
छोड़े थे जो कोरों पर ,
ठीक बाएँ तिल के नीचे ,
आज भी थिरकते हैं ..................
सुनो , वो नाज़ुक सी छुअन ,
कंधे से हौले से सरकती ,
ठीक हथेली की दलहीज तक ,
आज भी झूर झुराती....सिहराती है.....................सुनो ...सुनो न ...
छोड़े थे जो गर्दन के पीछे ,
ठीक दाएँ कान के नीचे ,
आज भी सुलगते हैं..........................
सुनो , वो नमकीन से बोसे ,
छोड़े थे जो कोरों पर ,
ठीक बाएँ तिल के नीचे ,
आज भी थिरकते हैं ..................
सुनो , वो नाज़ुक सी छुअन ,
कंधे से हौले से सरकती ,
ठीक हथेली की दलहीज तक ,
आज भी झूर झुराती....सिहराती है.....................सुनो ...सुनो न ...
सुना भी होगा और महसूस भी किया किया होगा....
ReplyDeleteरूमानी नज़्म !!
अनु
वाह बहुत सुन्दर...
ReplyDeleteबहुत रोमांटिक एहसास !
ReplyDeleteनई पोस्ट मेरे सपनो के रामराज्य (भाग तीन -अन्तिम भाग)
नई पोस्ट ईशु का जन्म !
ये निशानी है प्रेम के जिन्दा होने की ...
ReplyDeleteलाजवाब...
ReplyDeleteवाह बहुत ही खूबसूरत |
ReplyDeleteवाह...बहुत बढ़िया रचना..आप को मेरी ओर से नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं...
ReplyDeleteनयी पोस्ट@एक प्यार भरा नग़मा:-कुछ हमसे सुनो कुछ हमसे कहो
behad umdaaa....abhivyakti....
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