Friday, December 27, 2013

सुनो ...सुनो न ...

सुनो , वो नर्म कतरे अपनी साँसो के ,
छोड़े थे जो गर्दन के पीछे ,
ठीक दाएँ कान के नीचे ,
आज भी सुलगते हैं..........................
सुनो , वो नमकीन से बोसे ,
छोड़े थे जो कोरों पर ,
ठीक बाएँ तिल के नीचे ,
आज भी थिरकते हैं ..................
सुनो , वो नाज़ुक सी छुअन ,
कंधे से हौले से सरकती ,
ठीक हथेली की दलहीज तक ,
आज भी झूर झुराती....सिहराती है.....................सुनो ...सुनो न ...

8 comments:

  1. सुना भी होगा और महसूस भी किया किया होगा....
    रूमानी नज़्म !!

    अनु

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  2. वाह बहुत सुन्दर...

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  3. ये निशानी है प्रेम के जिन्दा होने की ...

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  4. वाह बहुत ही खूबसूरत |

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  5. वाह...बहुत बढ़िया रचना..आप को मेरी ओर से नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं...

    नयी पोस्ट@एक प्यार भरा नग़मा:-कुछ हमसे सुनो कुछ हमसे कहो

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