कल रात खिड़की पर ,
टंगे चाँद को देख मैंने पूछा....
उस पार क्या कोई मुझे याद करता है ?
चाँद मुस्कराया ......
कल रात बक्सा खंगालती माँ ,
तेरी गुड़िया सहला रही थी |
उसकी आँखों की नमी ,
एक कहानी सुना रही थी |
सुन कर सिहर गई मै,
इसलिए , क्या कल मै ,
ब़ार - ब़ार अपनी बिटिया को
निहार रही थी ? ?...........
इति ........
टंगे चाँद को देख मैंने पूछा....
उस पार क्या कोई मुझे याद करता है ?
चाँद मुस्कराया ......
कल रात बक्सा खंगालती माँ ,
तेरी गुड़िया सहला रही थी |
उसकी आँखों की नमी ,
एक कहानी सुना रही थी |
सुन कर सिहर गई मै,
इसलिए , क्या कल मै ,
ब़ार - ब़ार अपनी बिटिया को
निहार रही थी ? ?...........
इति ........
behad khubsurat, sundar ahsas
ReplyDeleteसुभानाल्लाह बहुत खुबसूरत लगी नज़्म ।
ReplyDeleteसुंदर रचना
ReplyDeletemy resent post
काव्यान्जलि ...: अभिनन्दन पत्र............ ५० वीं पोस्ट.
दिल पर असर करती रचना ..
ReplyDeleteसुन्दर रचना दिल को छूती है।
ReplyDeleteBEHTAREEN.....!
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