कल रात जम कर सोई थी मैं ,
पिछवाड़े नीम की जड़ में गहरे ,
गाड़ आई तेरी यादें - तेरी बातें ...
कस के बंद कर डाले खिड़की - दरवाजे सारे,
चटखनी चढ़ा , खींच दिए भारी परदे ..
खूब जम कर सोई थी मैं !
पर , किसको रही थी बहला ,
कितनी बंद करो खिड़की या रोशनदान ,
यह धूल की तरह यादें - बातें ,
न जाने कहाँ से चली आती हैं ?
छा जाती है घर के हर साजो- सामान पे ,
वैसे ही चाहे लाख करूँ कोशिश ,
तेरी यादों का चूरा बिखरा रहता मेरे वजूद पे ,
कितना भी बुहारू--कितना भी झाडूं,
फिर भी चिपका रह जाता है कहीं न कहीं
कल रात जम कर रोई थी मैं..........जी भर के ......सुबक - सुबक के ......
पिछवाड़े नीम की जड़ में गहरे ,
गाड़ आई तेरी यादें - तेरी बातें ...
कस के बंद कर डाले खिड़की - दरवाजे सारे,
चटखनी चढ़ा , खींच दिए भारी परदे ..
खूब जम कर सोई थी मैं !
पर , किसको रही थी बहला ,
कितनी बंद करो खिड़की या रोशनदान ,
यह धूल की तरह यादें - बातें ,
न जाने कहाँ से चली आती हैं ?
छा जाती है घर के हर साजो- सामान पे ,
वैसे ही चाहे लाख करूँ कोशिश ,
तेरी यादों का चूरा बिखरा रहता मेरे वजूद पे ,
कितना भी बुहारू--कितना भी झाडूं,
फिर भी चिपका रह जाता है कहीं न कहीं
कल रात जम कर रोई थी मैं..........जी भर के ......सुबक - सुबक के ......
SHANDAR BEHTREEN RACHNA
ReplyDeleteयादें ही तो वो मेहमान हैं जोबिन बुलाये चली आतीहैं।
ReplyDeleteतेरी यादों का चूरा बिखरा रहता मेरे वजूद पे ,
ReplyDeleteकितना भी बुहारू--कितना भी झाडूं,
फिर भी चिपका रह जाता है कहीं न कहीं ...
ये चुरा बार बार नहाने पे भी नहीं उतरेगा ... किसी की यादों को झाद्सना आसान नहीं होता ... खूबसूरत पंक्तियाँ ....
बहुत बहुत धन्यवाद् की आप मेरे ब्लॉग पे पधारे और अपने विचारो से अवगत करवाया बस इसी तरह आते रहिये इस से मुझे उर्जा मिलती रहती है और अपनी कुछ गलतियों का बी पता चलता रहता है
ReplyDeleteदिनेश पारीक
मेरी नई रचना
कुछ अनकही बाते ? , व्यंग्य: माँ की वजह से ही है आपका वजूद: एक विधवा माँ ने अपने बेटे को बहुत मुसीबतें उठाकर पाला। दोनों एक-दूसरे को बहुत प्यार करते थे। बड़ा होने पर बेटा एक लड़की को दिल दे बैठा। लाख ...
http://vangaydinesh.blogspot.com/2012/03/blog-post_15.html?spref=bl
यादों से कभी मुक्ति नहीं मिल सकती. बहुत अच्छी रचना.
ReplyDeleteye yaaden............
ReplyDeleteबहुत सुन्दर.
ReplyDeleteवैसे ही चाहे लाख करूँ कोशिश ,
ReplyDeleteतेरी यादों का चूरा बिखरा रहता मेरे वजूद पे ,
कितना भी बुहारू--कितना भी झाडूं,
फिर भी चिपका रह जाता है कहीं न कहीं
nice memorable memory.
WE USE TO LEAVE IN IT.
awesome just awesome...
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