Saturday, April 7, 2012

वह, नहीं होती वह ,


कमरे के पश्चिमी सिरे की खिड़की के ,
ठंडे कांच से गाल टिका ,
पायताने बैठी लडकी ,
देखे अपने हिस्से का अस्मां ....
गोल घुमती सडक ,
छितरे- छितरे पेड़ ,
बिखरे - बिखरे लोग ,
भीतर पसरी चुप्पी ,
जब बड़ा देती है उब ,
इस खिड़की पर आ जाती है टूट ...!!!

रेशमी - पीली किरणों का ,
सुखद - लापरवाह अहसास ..
गोल - गोल हाथ घुमा ,
पकड़ती - खेलती, झलकती लहरों से...
नाचती - मुस्कुराती - तरंगित,
लपेटती औ होती एकाकार ,
रोम- रोम से निकलती ऊष्मा ,
होता प्रिय मिलन का आभास ,
जुड़ता इन्द्रधनुषी संसार .....

वह,... नहीं होती वह ,
जब होती है उस ,
पश्चिमी खिड़की के पास .......!!!!!!!!!!!





22 comments:

  1. ग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है

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  2. भावनात्मक प्रस्तुति .... बहुत अच्छी लगी ॥

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  3. वह नहीं होती है वह
    पहुँच जाती है दुसरे संसार में वह....

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  4. सार्थक पोस्ट, सादर.
    कृपया मेरे ब्लॉग"meri kavitayen" की नयी पोस्ट पर भी पधारें.

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  5. लपेटती औ होती एकाकार ,
    रोम- रोम से निकलती ऊष्मा ,
    होता प्रिय मिलन का आभास ,
    जुड़ता इन्द्रधनुषी संसार .....
    वाह!!!!!!बहुत सुंदर रचना,अच्छी प्रस्तुति........

    MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: यदि मै तुमसे कहूँ.....

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  6. होता प्रिय मिलन का आभास ,
    जुड़ता इन्द्रधनुषी संसार .....
    very nice...

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  7. वह,... नहीं होती वह ,
    जब होती है उस ,
    पश्चिमी खिड़की के पास .....

    कुछ गहरे एहसास होते हैं जो किसी को किसी के पास बिना जाए ही ले जाते हैं .. उस वक्क सिर्फ मधुर आभास होता है ... प्रेम का आगार होता है ...

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  8. बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति।

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  9. भावनात्मक प्रस्तुति .... बहुत अच्छी लगी

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  10. बेहद खूबसूरत , कुछ शब्दों में बहुत कुछ कहती रचना , आभार

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  11. बहुत खूबसूरत लगी पोस्ट....शानदार।

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  12. जीवन के विविध रंगों को समेटे आपकी यह रचना ...प्रसंशनीय है ...!

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