ठंडे कांच से गाल टिका ,
पायताने बैठी लडकी ,
देखे अपने हिस्से का अस्मां ....
गोल घुमती सडक ,
छितरे- छितरे पेड़ ,
बिखरे - बिखरे लोग ,
भीतर पसरी चुप्पी ,
जब बड़ा देती है उब ,
इस खिड़की पर आ जाती है टूट ...!!!
रेशमी - पीली किरणों का ,
सुखद - लापरवाह अहसास ..
गोल - गोल हाथ घुमा ,
पकड़ती - खेलती, झलकती लहरों से...
नाचती - मुस्कुराती - तरंगित,
लपेटती औ होती एकाकार ,
रोम- रोम से निकलती ऊष्मा ,
होता प्रिय मिलन का आभास ,
जुड़ता इन्द्रधनुषी संसार .....
वह,... नहीं होती वह ,
जब होती है उस ,
पश्चिमी खिड़की के पास .......!!!!!!!!!!!
ग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है
ReplyDeletesadar abhar
Deleteभावनात्मक प्रस्तुति .... बहुत अच्छी लगी ॥
ReplyDeleteवह नहीं होती है वह
ReplyDeleteपहुँच जाती है दुसरे संसार में वह....
shukriyaa
Deleteसार्थक पोस्ट, सादर.
ReplyDeleteकृपया मेरे ब्लॉग"meri kavitayen" की नयी पोस्ट पर भी पधारें.
bahut bahut shukriyaa
Deleteलपेटती औ होती एकाकार ,
ReplyDeleteरोम- रोम से निकलती ऊष्मा ,
होता प्रिय मिलन का आभास ,
जुड़ता इन्द्रधनुषी संसार .....
वाह!!!!!!बहुत सुंदर रचना,अच्छी प्रस्तुति........
MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: यदि मै तुमसे कहूँ.....
होता प्रिय मिलन का आभास ,
ReplyDeleteजुड़ता इन्द्रधनुषी संसार .....
very nice...
वह,... नहीं होती वह ,
ReplyDeleteजब होती है उस ,
पश्चिमी खिड़की के पास .....
कुछ गहरे एहसास होते हैं जो किसी को किसी के पास बिना जाए ही ले जाते हैं .. उस वक्क सिर्फ मधुर आभास होता है ... प्रेम का आगार होता है ...
sadar abhar...
Deletevery nice...!!
ReplyDeletebahut sundar ..kavita .......
ReplyDeletesunder
Deleteबेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteshukriyaa
Deleteभावनात्मक प्रस्तुति .... बहुत अच्छी लगी
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत , कुछ शब्दों में बहुत कुछ कहती रचना , आभार
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत लगी पोस्ट....शानदार।
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteजीवन के विविध रंगों को समेटे आपकी यह रचना ...प्रसंशनीय है ...!
ReplyDeleteशुक्रिया
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