भीखू चमार की छोरी ,
चार जमात पढ़ गयी ,
यही बात ज़माने की ,
आँखों को गड़ गयी ...
छोटी जात की यह औकात ,
भूल गया क्या अपने हालात ,
अब क्या करेगा हमारी बराबरी ,
याद नहीं क्या अपनी बिरादरी ,
छोरी का नाम आज ही कटवाए ,
बैठे घर और माँ का हाथ बटाएँ ..
कल तक थे जो बेड़ियों में जकड़े ,
आज सर उठा हमसे ही अकड़े ..
न -न यह हमको गवारा नहीं ,
इसके सिवा अब कोई चारा नहीं .
सबक तो सीखना होगा ,
जल्दी ही इसे होश मे लाना होगा ...
चीखी -चिल्लाई - गिड़गिड़ाई बहुत ,
पर भेडियों के सामने चला न बस ,
गिरी हुई पस्त थक कर ढह गयी .....
भीखू अब ओसारे बैठे सर पीटे है ,
महतारी उसकी छाती कूटे है ..
जुडी है भीड़ चौखट से खेत तक ,
क्या होगा इस छोरी का अब,,
अब तो यह कुछ कर न पायेगी ,
बडन लोगो की सेवा के ही काम आयेगी ....
हर कोई अपनी पंचायती है छान रहा ,
बढ़ा - चढ़ा का किस्से हैं बांच रहा ..
उठी छोरी , चुपचाप -अपनेआप ,
भर मटका ,डाल शीश अपने ,
सीना तान किया हुंकार ,
यह नीच कृत्य पशुओं का ,
मुझको न रोक पायेगा ,
आज जो रुकी मैं तो यह ,
समाज , नरभक्षियों से भर जायेगा ,
इसलिए आज से करती हूँ यह प्रण ,
जितना होगा वार मेरा मनोबल उतना ही बढ़ता जायेगा .............
अब कोई न मुझे रोक पायेगा ...
नही रोक पायेगा ......!!!!
यथार्थपरक कविता...बहुत ख़ूब:)
ReplyDeleteअब वो जमाना नही रहा,आज की नारी अपनी शक्ति को पहचानने लगी है,,,,
ReplyDeleteRECENT POST...: दोहे,,,,
aapki rachna ne nishabd kar diya,
ReplyDeletesalaam
बहुत ही सार्थक और सटीक है पोस्ट.....आभार।
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा आपको इन हालातों के बारे में सोंचते हुए देखना !
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