आज फिर पैर फिसला,
क्या करूँ बड़ी लापरवाह हूँ न ...खिसयानी सी हंसी हँस दी ....तू ज़रा ख्याल रखा कर ,कभी गाल ,कभी हाथ ,कुछ न कुछ चितकबरा रहता है तेरा ...पता है , यह भी सिल्ली -बिल्ली कहते है ,बहुत प्यार करते है ,कोशिश बहुत करती हूँ ,उनको गुस्सा न आए ,पर पता नहीं क्यूँ ,
कुछ न कुछ कारण पैदा हो ही जाता है ,
देखो यह पट्टी भी उन्होने ही है बांधी,
वह सकुचाती सी बोली ....
:-)
ReplyDeleteअनु
सिल्ली बिल्ली ...बिलकूल सही
ReplyDeleteप्रेम की अनूठी अनुभूति बहुत ही प्यारी बहुत दुलारी मन के हर कोने को भिगोने वाली
ReplyDeleteरचना छोटी पर विस्तार विषद और एहसास गहरा बधाई
ReplyDeletevah behtreen
ReplyDeleteवाह
ReplyDelete:-))
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