Saturday, August 11, 2012

सिल्ली -बिल्ली

आज फिर पैर फिसला,
क्या करूँ बड़ी लापरवाह हूँ न ...
खिसयानी सी हंसी हँस दी ....तू ज़रा ख्याल रखा कर ,कभी गाल ,कभी हाथ ,कुछ न कुछ चितकबरा रहता है तेरा ...पता है , यह भी सिल्ली -बिल्ली कहते है ,बहुत प्यार करते है ,कोशिश बहुत करती हूँ ,उनको गुस्सा न आए ,पर पता नहीं क्यूँ ,
कुछ न कुछ कारण पैदा हो ही जाता है ,
देखो यह पट्टी भी उन्होने ही है बांधी,
वह सकुचाती सी बोली ....

7 comments:

  1. सिल्ली बिल्ली ...बिलकूल सही

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  2. प्रेम की अनूठी अनुभूति बहुत ही प्यारी बहुत दुलारी मन के हर कोने को भिगोने वाली

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  3. रचना छोटी पर विस्तार विषद और एहसास गहरा बधाई

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