Wednesday, August 8, 2012

vah

परे ढ्केल अपने दुधमुंहे बच्चे को,
वह, मुंहअंधेरे उठ गई ।
अंगडाई के लिये उठ्ते हाथ ,
पीडा से जहां के तहां रुक गये ।
फ़िर, उसने उचट्ती निगाह डाली
अपने सोये पति पर
और घूम गया , कल रात का वह दॄश्य
जब पी कर उसे पीटा गया था ।
वह पिट्ती रही बेहोश होने तक।
जब होश आया, वह सहला रहा था ,
उसका बदन ।
उसकी निगहों में थी दीनता ,
याचक की भांति गिडगिडा रहा था ।
वह जड बनी साथ देती रही, उसका ,
जड्ता से भी तृप्त हो सो गया वह,
और
सुलगती रही सूखी लकडी की तरह वह ।
बरबस उठ गई निगाहें ,
अपनी झोंपडी की तरफ़
कुल चार हाथ लम्बी , दो हाथ चौडी जगह।
काफ़ी है उसके चार बच्चों ,पति
और स्वयं के लिये ।
वह तो अच्छा है , चार पहले ही चल बसे,
वरना.............?
सोच कर उसकी आह ,निकल जाती है ।
बच्चे के करुण क्रन्दन ने रोक दिया विचारों का तांता,
शायद भूखा है ।
उसके पास अब था ही क्या ,
जो उसकी भूख मिटाता ।
छातियों का दूध भी , आखिरी बूंद तक निचुड चुका था ।
उसे एक घूंट पानी पिला ,
वह हड्बडाती उठी,
कब तक बैठी रहेगी ?
जल्दी चले वरना ,
सारे कागज पहले ही बीन लिये जाएगें ,
और वह कूडे को कुरेदती रह जाएगी ।
फ़टी चादर लपेट ,
पैंबद लगा बोरा उठा ,
नंगे पांव ,
ठिठुरती सर्दी में ,
सड्क पर आ गई वह।
अभी दिन भी नहीं निकला था , पूरी तरह ।
इधर- उधर से कुत्तों ने मुंह उठाया,
फ़िर से दुबक गए,
शायद पह्चानने लगे थे ,उसकी पद्चाप ।
वह चलती गई, चलती गई........गई,
लडखडाती ....
कांपती ....
कुलबुलाती....
ठिठुरती......
अब, वह सब कुछ भूल चुकी थी ,
मंजिल थी ............कूडे का ढेर
एक मात्र ध्येय.......
आंतिम ल्क्ष्य....
सारा संसार वृक्ष बन गया था उसके लिये,
और कूडे का ढेर चिडिया की आंख ,
जहां उसे , अपनी पडॊसन से पहले
पंहुचना था...........

इति

8 comments:

  1. दिल दहल गया......
    अच्छी रचना कहूँ ये संभव नहीं....
    :-(

    सशक्त अभिव्यक्ति....
    अनु

    ReplyDelete
  2. निशब्द..
    स्तब्ध...
    अवाक्....

    ReplyDelete
  3. हम ईन पलों के लिए बहुत कुछ कह सकते हैं किन्तु कभी कुछ भी नहीं कह पाते यही त्रासदी सदा देखने को ही मिलती है

    ReplyDelete
  4. बहुत सराहनीय प्रस्तुति......

    ReplyDelete
  5. इस पोस्ट की जितनी भी तारीफ की जाये कम है.....हैट्स ऑफ इसके लिए।

    ReplyDelete
  6. I m speechless...dil karah utha hai bas...!!

    ReplyDelete