Wednesday, August 15, 2012

कर्मभूमि मे ही मैने ,जन्मभूमि को ढूंढ लिया है..

बरसों बीते गए देश को छोड़े ,
पर देश ने नहीं छोड़ा मुझको ,
सब सुख - सुविधाओं के बीच ,
मन हुलस- हुलस जाता है,
जब -जब आए होली दिवाली ,
या हो घर मे मुंडन- सगाई ,
देश तेरी बड़ी याद आई ॥ 
परियों का सा विदेश है यह ,
न बिजली जाने का गम ,
न ही मक्खी या मच्छर ,
साफ -सुथरी सड़कें यहाँ की ,
न हार्न को पीं-पीं -पों -पों ,
फिर भी न जाने क्यों ,
मन धूल - मिट्टी को तरस जाता है ॥
जानती हूँ नहीं मुमकिन अब ,
लौट के देश को जाना ,
न रही मै अब उधर की ,
अब तो इधर ही मन लगाऊँगी ,
लौटी तो वहाँ प्रवासी बन जाऊँगी ,
बड़ा कठिन अब वहाँ ताल -मेल बिठाना ,
कर्मभूमि मे ही मैने ,जन्मभूमि को ढूंढ लिया है ,
अब कर्मभूमि मे ही मैने ,जन्मभूमि को ढूंढ लिया है ..

11 comments:

  1. कर्मभूमि मे ही मैने ,जन्मभूमि को ढूंढ लिया है ,
    अब कर्मभूमि मे ही मैने ,जन्मभूमि को ढूंढ लिया है ..

    behtreen

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  2. sahi bat hai janbhumi ko bhulana aasan kam nahi....

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  3. बहुत सुन्दर....मनोभावों को बखूबी लिखा है.

    अनु

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  4. यही यथार्थ और व्यावहारिक है फिर भी स्मृतियाँ जन्मभूमि का आभास कराती रहेंगी:)

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    1. अब लौटना नहीं संभव,
      भूत था वह वर्तमान है यह ,
      बच्चों के लिए भविष्य भी ,
      नहीं जानती कल क्या होगा ,
      पर तब तक यही सत्य है...,:)

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  5. अब कर्मभूमि मे ही मैने ,जन्मभूमि को ढूंढ लिया है ..
    koshish main bhi kar raha hoon\\\\\!!
    behtareen....

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    1. अब लौटना नहीं संभव,
      भूत था वह वर्तमान है यह ,
      बच्चों के लिए भविष्य भी ,
      नहीं जानती कल क्या होगा ,
      पर तब तक यही सत्य है...:)

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  6. सुख-सुविधा से परहेज ना हो,
    आँखें भी लबरेज ना हो;
    पर संस्कार ना कोई हरने पाए
    यह टीस कभी ना मरने पाए.

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