तुम क्या मेरा जशन मानते हो ,मै तो खुद से ही हूँ अनजान,खुली हवा मे कैसे लेते सांस ,बनी हुई मै तो आकाओ की गुलाम ,वो देखो कूढ़े के ढेर पे ,नन्हा कुत्तों संग जंग लड़ता है,बासी टुकड़े की खातिर खुन्मखून होता है ॥बीच सड़क पे सरेआम अस्मत लूटी जाती है ,आती-जाती आंखे बेबस ही रहती है ॥पैदा होते ही वह पिछवाड़े फेंकी जाती है ,बन ग्रास पशुओं का परलोक सिधारी जाती है ॥पढ़ा -लिखा नौजवान दर -दर मारा फिरता है ,आखिर चंद सिक्कों की खातिर बिकता है ॥
बन भीड़ का हिस्सा करता है बलवा ,बिनमकसद ही करता आगजनी और लुटपाट ॥ यह सब होता है सफेदी और खाकी की आड़ मे ,मुगलों से अंग्रेजों तक कितने हाथ है बदले ,लगता अब ,तब मै ज़्यादा थी महफूज़.....
बन भीड़ का हिस्सा करता है बलवा ,बिनमकसद ही करता आगजनी और लुटपाट ॥ यह सब होता है सफेदी और खाकी की आड़ मे ,मुगलों से अंग्रेजों तक कितने हाथ है बदले ,लगता अब ,तब मै ज़्यादा थी महफूज़.....
वे क़त्ल होकर कर गये देश को आजाद,
ReplyDeleteअब कर्म आपका अपने देश को बचाइए!
तंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाए,,,,
RECENT POST...: शहीदों की याद में,,
SHUKRIYA
Deleteआपके जज्बे को सदर प्रणाम
ReplyDeleteSHUKRIYA
Deletesalaam
ReplyDeleteABAHR
Deleteबहुत खुबसूरत अल्फाज़ में बयां की आपनी आजादी कि वेदना
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनाए.
DHNYWAD
Deleteअति सुंदर रचना है , क्यों न बार बार पढूं ?
ReplyDeleteSADAR ABHAR
DeleteIrony!!
ReplyDelete:(
Deletevery nice.
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