Thursday, August 16, 2012

" आज़ादी की पुकार "


तुम क्या मेरा जशन मानते हो ,मै तो खुद से ही हूँ अनजान,खुली हवा मे कैसे लेते सांस ,बनी हुई मै तो आकाओ की गुलाम ,वो देखो कूढ़े के ढेर पे ,नन्हा कुत्तों संग जंग लड़ता है,बासी टुकड़े की खातिर खुन्मखून होता है ॥बीच सड़क पे सरेआम अस्मत लूटी जाती है ,आती-जाती आंखे बेबस ही रहती है ॥पैदा होते ही वह पिछवाड़े फेंकी जाती है ,बन ग्रास पशुओं का परलोक सिधारी जाती है ॥पढ़ा -लिखा नौजवान दर -दर मारा फिरता है ,आखिर चंद सिक्कों की खातिर बिकता है ॥
 
बन भीड़ का हिस्सा करता है बलवा ,बिनमकसद ही करता आगजनी और लुटपाट ॥ यह सब होता है सफेदी और खाकी की आड़ मे ,मुगलों से अंग्रेजों तक कितने हाथ है बदले ,लगता अब ,तब मै ज़्यादा थी महफूज़.....

13 comments:

  1. वे क़त्ल होकर कर गये देश को आजाद,
    अब कर्म आपका अपने देश को बचाइए!

    तंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाए,,,,
    RECENT POST...: शहीदों की याद में,,

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  2. आपके जज्बे को सदर प्रणाम

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  3. बहुत खुबसूरत अल्फाज़ में बयां की आपनी आजादी कि वेदना
    हार्दिक शुभकामनाए.

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  4. अति सुंदर रचना है , क्यों न बार बार पढूं ?

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