Sunday, February 17, 2013

अब उसे सिरफिरे होने पे भी कोई एतराज नहीं ....

सिरफिरी और पागल घोषित किया गया उसे ,
वह आज सोचने जो लगी ,
वह आज बोलने जो लगी ,
वह आज विरोध जो करने लगी ,
वह आज तय जो करने लगी ,
वह आज चयन जो करने लगी ,
वह आज फैसले जो लेने लगी ॥ 

लीक पर चलो ,
ठोक- बजा कर ,
पूरी कायवाद कर,
अपने इस्तेमाल के लिए ,
लाये थे तुम्हें ।
जितना हो जरूरी ,
उतना ही बोलो ,
जब तक हम न कहे ,
जहाँ हो वहीं चिपकी रहो ,
वैसे भी तुम तो न घर की हो घाट की ,
तुम्हारा नाम भी तो अपना नहीं ,
न कोई पहचान ,
क्या भर सकती हो कोई भी कागज- पत्तर,
हमारे दिये नाम के बिना ,
जब नहीं तुम्हारा कोई अस्तित्व ,
तो फालतू मे इतना शोर क्यों करो ,
जाओ जाकर कुछ पोंछो ,
कुछ साफ करो ॥

पर वह क्या करती ,
उसके सिर के चारों तरफ ,
जैसे कुछ उग आया था ,
जो दिखता तो नहीं ,
पर हर पल - हर घड़ी ,
उसे कौंचता रहता ,
उसे उकसाता - बहकता ,
पगली ! मत आ इस छलावे मे ,
तू भी एक शरीर -एक आत्मा है,
बरसों से कुचली  गयी ,
रक्त -रंजित- उपेक्षित ,
अब न कर देर ,
कर आज़ाद अपने को ,
विभित्सित इन विचारों से ,
तेरा पागलपन कहीं भला है .,
इसलिए, अब उसे सिरफिरे होने पे भी कोई एतराज नहीं .....

9 comments:

  1. बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति.

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  2. सुन्दर .बेहतरीन प्रस्तुति.

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  3. पगली ! मत आ इस छलावे मे ,
    तू भी एक शरीर -एक आत्मा है,
    बरसों से कुचली गयी ,
    रक्त -रंजित- उपेक्षित ,
    अब न कर देर ,
    कर आज़ाद अपने को ,
    विभित्सित इन विचारों से ,
    तेरा पागलपन कहीं भला है .,
    इसलिए, अब उसे सिरफिरे होने पे भी कोई एतराज नहीं

    बहुत खुबसूरत भावनाओं से भरी मन को तरंगित करती रचना

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  4. बहुत सुंदर और मार्मिक अभिव्यक्ति .........
    धन्यवाद पूनम जी ...........

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