आज धुंधला - धुंधला दिखा ,
अपना ही प्रतिबिम्ब दर्पण में,
बार - बार पौंछती रही उसे ,
फिर भी चमका न सकी आईना |
अचानक हथेली से संभाली लट,
तो छू गया गीलापन ,
तब समझ आया ,
क्यों धुंधलाई है अपनी परछायीं |
सहसा असपष्ट होने लगे अक्षर ,
पढ़ न सकी तुम्हारी लिखावट ,
कभी दूर - कभी पास करती रही पन्ने ,
फिर भी साफ़ न हो सकी निगाह ,
अकस्मात टपक गयी एक बूंद ,
तब समझ आया ,
क्यों धुंधलाई है तुम्हारी इबारत ................
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