Monday, January 4, 2016

kambal ki garmahat

रुई के नरम - नर्म फाओं सी गिरती ,
कोमल शुभ्र चाँदनी - सी बिछती ,
गिर रही आसमानी बोरे से बर्फ .......
याद आ गया बचपन ,
जब अम्मा रुई धुनने वाले को बुला,
करती पहले घंटो हिसाब- किताब ,
दोनों ही दल देते अपनी - अपनी दलील ,
माहिर खिलाड़ी से जाँचते- परखते ,
एक - दूजे को....आखिर तय होता एक दाम............
हम तो इन सब बातों से बेखबर ,
बस करते रुई धुनने का इंतज़ार ,
उसकी तकली की तक - तक ,
मानो सप्त - स्वर का राग ,
हवा मे उड़ती रुई और
हमे मिल जाता खेलने का सामान,
हो जाती धर - पकड़ की शुरुआत ,
अम्मा की झिड़की से बे परवाह ,
बस एक मौके की तलाश ,
अब .........न है रुई धुनने वाला ,
न ही गली मे गूँजती उसकी आवाज़ ,
न अम्मा की झिड़की ,
न रही कंबल मे पहली सी गर्माहट ................PK

Sunday, December 27, 2015

सपनों,...... नसीब.....कालातीत........एक....शहर ......!!!!!!

सपनों,...... नसीब.....कालातीत........एक....शहर ......!!!!!!
एक रेतीला मीलों फैला रेगिस्तान, किसने कभी सोचा था कि बन जाएगा जगमगाता , रोशनी, चकाचौंध और माया - मोह से भरपूर शहर । विश्व का सबसे बड़ा जुआघर बसा और बना hoover dam के कारण। मजदूरों और कारीगरों को रूखे - सूखे - रेतीले प्रदेश मे जीने की आस देने के लिए। जब शराब और जुआ खुल कर बहने लगे तो बड़े- बड़े  जुआरी... gangster ...mobster..आगे आए और बन गया एक मायानगर। जहाँ दिन और रात एक हैं...न रात को सोती है न दिन ऊँघता है...एक मायावी शहर , मानवीय शक्ति - कल्पना का अद्भुत  नमूना पूरा शहर छोटे - बड़े पुलों...flyovers से जुड़ा है। मनमोहक - शराब- शबाब से भरपूर शहर जो अपने जादुई आकर्षण से पूरी दुनिया को अपनी और खींच लाता है। आज सबसे बड़ा पर्यटन स्थल बन गया है। यह ज़रूरी नहीं की आप जुआरी या शराबी हो इसलिए आप Vagas जाए। दुनिया के सबसे खूबसूरत casino...आलीशान Hotels..जिस्मो की नुमाइश .जो बेहुदा न लग कर मन को लुभाते हें...जगमगाती रोशनी पर झूमते फव्वारे , ब्रांड shops..शानदार - भव्य Shows.खाने - पीने के अनगिनत स्थान , सड़कों पर तरह - तरह के अनोखे परदर्शन । ...airport से ही slot machines की शुरुआत हो जाती  है जो grocery stores मे भी दिखती है। The Strip शहर का मुख्य आकर्षण , एक लंबी सड़क के दोनों तरफ बने विशाल ...शहर  के समान Hotels। जी हाँ, हर hotel हजारों एकड़ मे फैला .... किसी Theme पर आधारित है । सपनों और  सच्चाई से भरपूर शहर ...मन मे छुपी नटखट सपनीली दुनिया को सजाता एक सुनोजियत...व्यवस्थित so called SIN CITY.........

Thursday, October 22, 2015

मैं पारदर्शी

तुम्हें पता है न कि,
हूँ, मैं पारदर्शी तुम्हारे लिए ,मुझे भी है पता ...............क्यूँ घुल जाती हूँ ,तुम्हारे सामने और,सोख लेते हो तुम ,मेरी जलन , परेशानी , पीड़ा ,अपने नर्म होठो के,सुरभित स्पर्श से ..............................बुहार देते हो ,मिथ्याबोध , भ्रम , नुक्स ,अपनी झिलमिलाती पालको की हल्की सी सरसराहट से ..............मुझे है पता कि,मैं हूँ पारदर्शी तुम्हारे लिए.......मुझे है पता .....सिर्फ सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे लिए ..................

Saturday, July 4, 2015

दो रंग


वह देखो ....देखो अरे देखो तो ज़रा ,
जन्मा पलको पे एक हंसी सपना ,
देखो ... निहारो .... सरहाओ,
पनपा ... पला....सजा ...संवरा ,
देखो .... देखो .... अरे देखो तो सही ,
पसीजा .... दुलका .... लुढ़का ....झरा ,
छलका ....टप.... टप ...टप ... ||
वह देखो ... देखो अरे देखो तो ज़रा ,
जन्मा पलकों पे एक हंसी सपना ,
देखो.... निहारो ...सरहाओ ,
पनपा ...पला ...सजा ....संवारा ,
देखो ...देखो...अरे देखो तो सही ,
हुआ मजबूत ...पक्का...द्र्ढ...
प्रबल ...पुख्ता .....साकार ...||

Saturday, May 9, 2015

पहला प्यार


उफ़्फ़ ! क्या कहना ,
वो पहला प्यार ...
स्कूल की पिछली सीट पर पनपता ,
हिसाब के सवालो पे उलझता ,
हिन्दी की मात्राओं से झुझता ,
भूगोल की क्लास मे घूमता,
इतिहास को रटता - रटता ,
लाइब्रेरी की किताबों से झाँकता ,
अँग्रेजी की कविता को निगलता ,
आर्ट के पन्नो को रंगता ,
विज्ञान को उलटता - पलटता ,
पी टी सर से धमकता ,
केंटीन मे समोसे पे अटकता ,
उफ़्फ़ ! क्या कहना ,
पहला प्यार .....

Thursday, March 19, 2015

अनोखा प्यार

उस नाज़ुक ...मखमली हवा को ,
बाँके गबरू छैला से .....
न जाने कैसे जाने - अनजाने .....ही प्यार हो गया ।
वह करती उसका पीछा दिन औ रात
उसे सहलाती तो छेड़ जाती कभी,
बिखेरती उसके कदमों मे,
बेले - जुही - चम्पा की कलियाँ ।
कभी ले जा उड़ा अपने संग ,
गहरी - हसीन वादियों की बाहों मे ।
नौजवान भी दीवान उस पगली हवा का,
दोनों यथार्थ से परे , अपने मे ही मस्त ।
अपनी इस एन्द्र्जलिक दुनिया मे प्रसन्न,
पर किस्मत को था न मंजूर ....
पड़ गयी दुष्ट कुमारी की शौकीन नज़र ,
गबरू नौजवान के तन की और ,
नहीं कर पायी सहन बाँके का इंकार ....
उठवा लिया भेज लाम औ लश्कर
बेबस हवा बहुत चीखी और चिल्लाई ,
उखड़े पाँव सेना के घड़ी - दो घड़ी ,
पटका सिर ...हुई लुहलहान...किया पीछा ...
गुस्से से बौखलाई करती सब तहस - नहस ,
आग - बबूला प्रचंड बवंडर उठाती,
चीखती -- फुफकारती - गरजती ....
आज भी ढूंढती अपना सनम ..................@ पूनम

Saturday, January 31, 2015

वह कसूरवार

उसने चुराई सूरज से रोशनी,
फिर वह छाँव बन गयी ,
कभी आगे - कभी पीछे,
घटती - बदती बस यूं ही ,
उसके ही इर्द - गिर्द बस यूं ही ,
बिन कसूर भी बनी कसूरवार ,
कीमत चुकनी पड़ी भारी,
एक कतरा रोशनी के लिए।

अब वह भी बनना चहाती हाए सूरज,
जगमग - जगमग - धधकता,
पर अब अपनों को हाए इंकार ,
आदत जो हो गयी हाए तुम्हारी,
अहर घड़ी चक्करघिन्नी सी तुम,
अरे ! छोड़ो जाने भी दो ,
क्यों , बेकार मए करती हो
अपना समय बरबाद,
जब मिल रही मुफ्त की रोशनी ,
व्यर्थ ही हो रही परेशान,
तुम बस छाया हो ,
छाया ही बन कर रहो ,
 आगे - पीछे - इर्द - गिर्द ,
गूंगी - बाहरी - बौनी  बन,
स्याह - श्यामल परछाई सी,
वह कसूरवार ..........................