Monday, September 10, 2012

हथेली पे मेहंदी

मेहंदी की महक उसे बचपन से भाती थी ,
हो किसी की सगाई या शादी ,
मेहंदी लगवाने सबसे पहले पहुँच जाती थी ।
डांट भी खाती, गलियाँ भी पड़ती ,
पर पता नहीं वह अपने को रोक नहीं पाती थी ।

मेहंदी की महक ले जाती उसे बादलों के पार ,
सफ़ेद घोड़े पे बांका सजीला राजकुमार ,
लाल लिबास मे सजी -लदी वह कमसिन दुलहन ,
बहने लगती मंद – मंद सुगंधित बयार ,
देवी – देवताओं का स्वर्ग से झड़ता आशीर्वाद ।

गंगा –यमुना कल –कल करती चरण पखार,
शंख फूंकते झूम -झूम आँगन के पारिजात ,
तारों की होती हर द्वार पे वंदनवार ,
अप्सराएँ और किन्नर गाते शुभ गान,
हर आता – जाता देता खुशियों की सौगात ।

मर गयी कहाँ ए कलमुँही .....सुन ,
टूटी निंद्रा , पड़ी पीठ पे करारी लात,
कमबख्त ये बर्तन क्या तेरा खसम घिसेगा ,
या तेरी अम्मा ने बैठा लिए ,घर पे यार ,
महारानी की अदा देखो तो ज़रा ,
हथेली पे मेहंदी सजा ,समझे है मिल जाएगा राजकुमार ॥