Sunday, May 1, 2011

adat

गाल पर हाथ रख ,मुस्कुराते हुए ,

उसने कहा.......
अब तुम्हारी आदत सी हो गयी है
तो हमने भी मुस्कुरा कर यही कहा ...
न हूँ मैं सुबह की भाप उड़ाती एक प्याला चाय ,
न रबरबैंड में लिपटा बरामदे में फेंका अखबार ,
ऐसा भी तो कह सकते थे ....
अब तुम्हारा साथ अच्छा लगता है ,
बिन बात यूँ ही खिलखिलाना ,
कुछ कहते - कहते रुक जाना ,
एक साथ बोलना या ,
अचानक चुप हो जाना ,
बस एकटक देखना
क्या है जो यकायक ,
रोक देता है...
क्यों नहीं कह पाते,
मन की परतों मे है जो दबा ,
कुछ अनकहा - अनछुआ सा ,
जो हमेशा हवा में टंगा रह जाता है ,
या फिर अगली मुलाकात की ,
पृष्ठभूमि बन जाता है .....!!!!!!